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स्पर्श की लालसा-इन विषयों के प्रति क्षिप्त अवस्था में बड़ी गहरी आसक्ति रहती है इसलिए क्षिप्त अवस्था तनाव पैदा करती है। तनाव को ग्रहण करने का काम क्षिप्त अवस्था का है। हम इसकी स्ट्रेज के साथ तुलना करें। स्ट्रेज यानी दबाव। यह दबाव है, विषयासक्ति या मूर्छा का। इतना दबाव पड़ता है कि आदमी तनाव में चला जाता है।
दूसरी है विक्षिप्त अवस्था। इस अवस्था में उत्तेजना जल्दी आ जाती है। मामूली-सी घटना पर भी चित्त उत्तेजित हो जाता है, संवेगों पर नियंत्रण नहीं रहता। जब संवेग अनियंत्रित होते हैं तब तनाव स्वाभाविक है।
___ मूढ़ अवस्था में कुछ भी पता नहीं चलता। व्यक्ति इतना दिग्मूढ़, किंकर्तव्यविमूढ़ बन जाता है कि वह कुछ भी करने की स्थिति में नहीं रह जाता। अहेतुक नहीं है तनाव इन तीन अवस्थाओं की विज्ञान ने शारीरिक आधार पर व्याख्या की है। स्ट्रेस एक दबाव है और स्ट्रेस वह अवस्था है, जहां स्नायविक खींचातानी शुरू हो जाती है। उस स्नायविक खींचातानी के द्वारा स्नायुओं में आकार का परिवर्तन होता है तो वह तनाव बन जाता है। हाइपर टेंशन की स्थिति में काफी भयानकता पैदा हो जाती है। इतनी अकड़न और जकड़न पैदा हो जाती है कि धमनियां सिकुड़ जाती हैं, थक्के जम जाते हैं। ऐसे में किसी को बाईपास सर्जरी करानी पड़ती है, हार्ट का आप्रेशन कराना पड़ता है। यह तनाव अहेतुक नहीं है, स्वाभाविक नहीं है। एक निष्पत्ति है, परिणाम है।
तनाव विसर्जन की प्रक्रिया हम तनाव-विसर्जन की प्रक्रिया पर चिन्तन करें । एक आध्यात्मिक पक्ष को छोड़कर तनाव विसर्जन की दूसरी कोई प्रशस्त प्रक्रिया हमारे सामने नहीं है। आध्यात्मिक प्रक्रिया सबसे ज्यादा महत्त्वपूर्ण और शक्तिशाली प्रक्रिया है। डॉक्टर तनाव की स्थिति में दवा देता है, शामक औषधियों का प्रयोग करता है। ट्रैक्वेलाइजर और शामक औषधियों को देकर एक बार तनाव
७४ : नया मानव : नया विश्व
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