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आवश्यक नहीं है। एक प्रशासक यह मानता है-अगर तनाव न हो तो हम अपने अधीन काम करने वालों को अपने नियंत्रण में नहीं रख सकते। हमें तो कुछ आवेश भी दिखाना पड़ता है, गुस्सा भी करना पड़ता है। ऐसा मान लिया गया है-तनाव सामान्य स्तर पर होता है तो समस्या नहीं बनता किन्तु जो आदत पड़ जाती है, वह बढ़ जाती है तो समस्या गहराती चली जाती है। आज तनाव विश्व की सबसे बड़ी समस्याओं में एक बन गया है। जैसे गरीबी एक समस्या है, बीमारी एक समस्या है, वैसे ही तनाव भी एक विश्वजनीन समस्या बन गया है। गलत अवधारणाएं प्रश्न है-तनाव ज्यादा क्यों होता है ? इसका एक कारण है गलत अब धारणाएं। मिथ्या अवधारणाओं ने तनाव को जन्म दिया है, दे रही हैं और उसका पालन-पोषण भी कर रही हैं। एक अवधारणा बन गई-क्रिया की प्रतिक्रिया अवश्य करनी चाहिए। व्यक्ति छोटा है। उसका व्यवहार अगर अनूकूल नहीं होता है तो वह व्यक्ति के लिए असह्य बन जाता है। व्यक्ति तनाव से भर जाता है। आदमी अपनी गली से जा रहा था। कोई कर्मचारी आया। हाथ नहीं जोड़ा, बस तनाव से भर गया। पुलिस का अफसर आया, सिपाही ने सेल्यूट नहीं दिया। परिणामस्वरूप तनाव में आकर उसे दंडित कर दिया। हमारी इस प्रकार की जो अवधारणाएं बनी हुई हैं, वे अवधारणाएं तनाव पैदा करती हैं।
तनाव के हेतु लोभ, क्रोध, मादक द्रव्य का सेवन, भय और काम-वासना-ये तनाव के प्रमुख कारण हैं। योग शास्त्र में चित्त की तीन अवस्थाएं बतलाई गई हैं-क्षिप्त, विक्षिप्त और मूढ़। ये तीन अवस्थाएं तनाव का कारण बनती हैं। क्षिप्त अवस्था में मन बिखरा-बिखरा होता है। वह कहीं भी केन्द्रित नहीं होता। सदा चित्त का बिखराव रहता है। आदमी जल्दी तनाव में आ जाता है। जो क्षिप्त अवस्था में रहता है, वह विषयों के प्रति बहुत लोलुप होता है। शब्द सुनने की लालसा, रूप और सुगंध की लालसा, रस और
तनाव-विसर्जन : ७३
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