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तनाव - विसर्जन
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मनुष्य में कषाय है । कर्मवाद की परिभाषा में कषाय का चक्र काम कर रहा है । वैदिक परिभाषा में रजोगुण और तमोगुण काम रहे हैं। तनाव होता रहता है। तनाव निष्पत्ति है, हेतु नहीं है । तनाव के हेतु बहुत सारे हैं । कर्मवाद की भाषा में मोहकर्म तनाव का सबसे बड़ा हेतु है । मोहकर्म की प्रकृतियां - क्रोध, अहंकार, लोभ, भय, घृणा, वासना -- ये सब तनाव पैदा करने वाली हैं । रजोगुण और तमोगुण तनाव पैदा करने वाले हैं । तनाव के कुछ शारीरिक कारण भी हैं ।
जीवन की अनिवार्य प्रक्रिया
शरीर की प्रवृत्ति होती है तो तनाव होता है । तनाव के बिना जीवन चलता भी नहीं है। कमरे में कुत्ता घुस आया, उसे निकालना है तो भी तनाव में आना पड़ेगा। किसी ने गलत काम कर दिया, उसे वर्जित करते समय तनाव में आना ही पड़ेगा। तनाव जीवन की एक अनिवार्य प्रक्रिया बना हुआ है । किसी भी क्षण व्यक्ति तनाव की स्थिति में आ जाता है। तनाव आता है और चला जाता है तो ज्यादा भयंकर नहीं होता । फिजिकल तनाव अगर ज्यादा हो जाए तो स्थिति बिगड़ जाती है । केवल प्रवृत्ति ही प्रवृत्ति, काम ही काम, कहीं विश्राम नहीं, ऐसी स्थिति में तनाव इतना भयंकर बन जाता है कि मांसपेशियां भी अकड़ जाती हैं। मानसिक और भावनात्मक तनाव पूरी तरह हानिकारक हैं। शारीरिक तनाव तो कभी-कभी उपयोगी बनता है, थोड़ा-बहुत आवश्यक भी रहता है, किन्तु मानसिक तनाव
७२ : नया मानव : नया विश्व
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