________________
अठारह पाप बतलाए गए हैं। उनमें एक सूची है. मनोबल को घटाने वाली। कलह, अभ्याख्यान, पैशुन्य, परपरिवाद-मनोबल घटाना हो तो इससे बढ़िया सूची आपको दूसरी नहीं मिलेगी। ईर्ष्या, चुगली, आरोप, कलह-चारों का प्रयोग करो, आपका काम हो जाएगा। अगर मनोबल बढ़ाना है तो इनसे बचते रहो। एक ऐसा व्यक्तित्व, जिसके निर्माण की हर कोई अपेक्षा रखता है, निर्मित हो जाता है। सोचना कोई बहुत बड़ी शक्ति नहीं है। यह तो मन का स्वाभाविक कार्य है। शक्ति का स्रोत है मनोबल का विकास।
आज की शिक्षा में विद्यार्थी को मनोबल का अभ्यास नहीं कराया जाता, मनोबल बढ़ाने की प्रक्रिया नहीं बताई जाती। एक भ्रान्ति अवश्य पैदा कर दी गई और वह यह है कि बौद्धिक विकास और मानसिक विकास को एक मान लिया गया। बौद्धिक विकास मानसिक विकास से बिल्कुल भिन्न होता है। मानसिक विकास का मतलब है मनोबल का विकास। बुद्धि और मन एक नहीं हैं। इनके विकास को एक मानना भ्रांति को जन्म देना है। भाव विशुद्धि व्यक्तित्व-निर्माण का तीसरा घटक है भावविशुद्धि। मानसिक क्षमता के विकास से भी शक्तिशाली कारक तत्त्व है भावविशुद्धि। यह मन को भी प्रभावित करने वाला केक्टर है। भाव जगत् हमारा आन्तरिक जगत् है। जैसा भाव वैसा व्यक्ति। सब कुछ भाव पर निर्भर करता है। भावों का परिष्कार हमारे व्यक्तित्व निर्माण का एक महत्त्वपूर्ण अंग है । क्रोध का संतुलन, अहंकार का संतुलन, लोभ और कपट का संतुलन-इन चारों का संतुलन करें। इन चारों को उपजीवी कषाय कहा जाता है। इन सबका परिष्कार करना प्रेक्षाध्यान की प्रक्रिया से संभव है। यह तो नहीं कहा जा सकता-ध्यान का अभ्यास करने वाला एकदम वीतराग बन जाता है। ऐसी कल्पना करें तो यह अतिकल्पना होगी। कुछ लोग इस भाषा में बोलते हैं-अमुक आदमी इतनी देर तक ध्यान करता है, फिर भी उसे गुस्सा आता है, लोभ और अहंकार भरा है। ध्यान का अर्थ क्या है ? वह यह नहीं देखता, जिसने ध्यान शुरू किया है, उसमें कुछ अंतर तो आया है। व्यक्ति ने क्रोध, अहं आदि कितना कम किया, यह भी तो देखना चाहिए। ध्यान करके इतनी जल्दी कोई वीतराग
व्यक्तित्व का. निर्माण : ६६
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org