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में बहुत सहायक बनता है। समवृत्ति श्वास प्रेक्षा, दीर्घश्वासप्रेक्षा आदि प्रयोग भी नाड़ीतंत्र के संतुलन में बहुत महत्त्वपूर्ण सिद्ध होते हैं। हम शरीर को व्यक्तित्व-निर्माण का साधन बनाएं और शरीर का जो अन्तरंग पक्ष है, उस पर प्रयोग करें, व्यक्तित्व निर्माण की दिशा स्पष्ट होगी।
व्यक्तित्व का एक पक्ष व्यक्तित्व का एक पक्ष है विचार। मानसिक दक्षता को बढ़ाएं। मानसिक दक्षता व्यक्तित्व-निर्माण का बहुत बड़ा साधन है। जिसमें मानसिक क्षमता है, उसमें अपने आप व्यक्तित्व का निर्माण होगा। मनोबल एक साधारण से व्यक्ति को बहुत बड़ा बना देता है। वह नहीं है तो बड़ा लगने वाला भी बहुत छोटा बन जाता है। ऐसे लोगों को भी देखा है, जो बड़े हृष्ट-पुष्ट थे, किन्तु मनोबल इतना कमजोर था कि जीवन में कुछ नहीं कर पाए। ऐसे लोगों को भी देखा, जिनका शरीर हड्डियों का ढांचा जैसा दिखाई देता था पर मनोबल प्रबल था। गांधी का उदाहरण सामने है। शरीर कैसा था, किन्तु मनोबल इतना प्रबल था, जिसकी कल्पना ही की जा सकती है। प्राचीन भाषा में कहें तो सुमेरु पर्वत को भी हिला देने की सामर्थ्य रखता था। एक बड़े साम्राज्य को उन्होंने हिला दिया। आखिर शक्ति का स्रोत क्या था ? व्यक्तित्व महान् किस आधार पर था ? मात्र मनोबल और संकल्पबल के आधार पर।
शक्ति का स्रोत संकल्पबल या मनोबल को बढ़ाने वाला तत्त्व है विचारों की निर्मलता। 'मैं किसी के प्रति अनिष्ट विचार नहीं करूंगा,' जिसका यह संकल्प पुष्ट हो गया, उसका संकल्पबल बढ़ता चला जाएगा। मनोबल को क्षीण करता है दूसरे को अनिष्ट चिन्तन । जब प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कराया जाता है, पहला संकल्प होता है- 'मैं चित्त की शुद्धि के लिए प्रेक्षाध्यान का प्रयोग कर रहा हूं।' इससे विचार निर्मल बनते हैं। व्यक्ति किसी का अनिष्ट सोचता है तो उसका अनिष्ट होता है या नहीं, अपना स्वयं का अनिष्ट तो हो ही जाता
है।
६८ : नया मानव : नया विश्व
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