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जी के शिष्य थे । गुरुदेव सरदारशहर के पास गांव मेलूसर में विराज रहे थे । वैद्य जी ने दर्शन किए। देखते ही उनका ध्यान कानों पर अटक गया। वे बोले- 'आचार्यजी ! आपके कानों को देखकर मुझे बुद्ध की स्मृति हो रही है । उन्हीं के जैसे आपके कान हैं।' बाहर का व्यक्तित्व भी बहुत प्रभावित करता है । यह भी एक कारक तत्त्व है व्यक्तित्व का । किन्तु हम उसी पर अटक न जाएं। हमें यह भी देखना है कि शरीर में होने वाला आन्तरिक व्यक्तित्व कैसा है ? नाड़ीतंत्र कितना स्वस्थ है, ग्रन्थितंत्र कितना स्वस्थ है ? प्रेक्षाध्यान में इन दोनों पर बहुत ध्यान दिया गया है।
अध्यापक की समस्या
प्रेक्षाध्यान की अनेक विधियां, प्रविधियां नाड़ीतंत्र और ग्रन्थितंत्र को स्वस्थ बनाने की प्रक्रियाएं हैं । प्राणायाम के कुछ ऐसे प्रयोग हैं, जो नाड़ीतंत्र को संतुलित बना देते हैं । अध्यापक के सामने एक बड़ी समस्या होती है । उसे दो प्रकार के विद्यार्थियों से सामना करना होता है । कुछ विद्यार्थी विद्यालय में बड़े उद्दण्ड होते हैं । वे पूरे विद्यालय के वातावरण को उद्दण्ड बना देते हैं। कुछ इतने कायर, कमजोर और दब्बू होते हैं कि पीछे खिसकते रहते हैं, दुम दबाकर पीछे हटते रहते हैं। इससे अध्यापक के सामने बड़ी समस्या होती है । यदि शिक्षक कुशल है और यह जानता है कि गड़बड़ी कहां है, तो वह नाड़ीतंत्र पर ध्यान देगा, समस्या को समाधान मिलेगा । यदि वह नहीं जानता है तो अभिभावकों से शिकायत करेगा - तुम्हारा लड़का अच्छा नहीं है । माता-पिता लड़के को डांट देंगे, किन्तु समस्या समाहित नहीं होगी ।
अध्यापक ने एक लड़के के पिता के पास शिकायत भेजी - तुम्हारा लड़का बहुत बातूनी है, बड़ा उद्दण्ड है। पिता ने उस नोटिस को पढ़ा और उसके नीचे एक नोट लिखकर भेज दिया - आप अभी इसकी मां से नहीं मिले ।
केवल शिकायत से बहुत ज्यादा सुधार नहीं होता । तात्कालिक कोई थोड़ा-बहुत अन्तर आ जाता है पर उससे विद्यार्थी के व्यक्तित्व निर्माण का प्रश्न समाहित नहीं होता ।
६६ : नया मानव : नया विश्व
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