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तो कोई दोष नहीं है | नहीं रखता है तो मानो विशेष साधना कर रहा है किन्तु रखने वाले को हीन मत मानो। कोई उपवास करता है, अच्छी बात है, किन्तु न करने वाले को हीन मत मानो । अहं का प्रदर्शन मत करो ।
विघटन का हेतु
महत्त्वपूर्ण बात है - न हीन भावना, न अहं की भावना, न अपना उत्कर्ष और न दूसरों का अपकर्ष। न एकान्तिक आग्रह और न मिथ्या पकड़, एक समन्वित अनेकान्त की प्रणाली । शायद यह व्यक्तित्व निर्माण का सबसे सुन्दर सिद्धान्त है ।
जिस व्यक्ति ने अनेकान्त को हृदयंगम किया है, उसके व्यक्तित्व का निर्माण अपने आप हो गया । उसे ज्यादा चिन्ता करने की जरूरत नहीं है । व्यक्तित्व का विखण्डन एकान्तवादी दृष्टिकोण के द्वारा होता है। जिनका दृष्टिकोण एकान्तवादी बन जाता है, उनका व्यक्तित्व अपने आप विघटित हो जाता है ।
व्यक्तित्व-निर्माण के लिए मनोवैज्ञानिकों ने काफी काम किया है। यूंग से लेकर आज तक अनेक मनोवैज्ञानिकों ने इस विषय पर काफी प्रकाश डाला है। अनेक विधियां - प्रविधियां प्रस्तुत की हैं ।
शरीर और व्यक्तित्व
व्यक्तित्व-निर्माण के लिए शरीर पर ध्यान देना बहुत जरूरी है । शरीर सबका समान नहीं होता । एक व्यक्ति लम्बा होता है और एक ठिगना । एक व्यक्ति मोटा है, एक दुबला-पतला । ये व्यक्ति की अपनी शारीरिक विशेषताएं हैं और इन पर ध्यान देने की बहुत आवश्यकता भी नहीं होती । किन्तु शरीर के दो तत्व - ग्रन्थितंत्र और नाड़ीतंत्र हमारे व्यक्तित्व को बहुत प्रभावित करते हैं । व्यक्तित्व के निर्माण में इनकी प्रमुख भूमिका रहती है ।
ग्रंथितंत्र और व्यक्तित्व
ग्रंथितंत्र को व्यक्तित्व - निर्माण से भिन्न नहीं माना जाता । जिस व्यक्ति का थायराइड ग्लेण्ड काम नहीं करता, जिसमें थायरोक्सिन की कमी होती है,
६४ : नया मानव : नया विश्व
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