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साथ व्यवहार, सबके साथ व्यवहार। समाज का एक रूप बन जाता है। सब अपने आप में रहें, हमारा दूसरे के साथ कोई व्यवहार न हो, अनुक्रिया न हो तो समाज नहीं बनता। व्यवहार बाहर आता है, विशेषताएं भीतर रहती
झलकता है व्यवहार एक व्यक्ति सहिष्णु है। सहिष्णुता कभी बाहर नहीं आती किन्तु व्यवहार से उसका पता चल जाता है। किसी व्यक्ति ने अभद्र व्यवहार किया, फिर भी वह शान्त और मौन रहा, अपने आप पता लग जाएगा-व्यक्ति शालीन है। अगर शालीन नहीं होता तो वह भी अभद्र व्यवहार पर उतर आता। आचार्य भिक्षु को किसी व्यक्ति ने मुक्का मार दिया, गाली दे दी। किन्तु वे शान्त रहे। तितिक्षा भीतर थी और व्यवहार बाहर झलक रहा था-सन्त कितना शालीन है। बुद्ध को किसी ने गाली दी, वे हंसते रहे। किसी ने पूछा-आपको गुस्सा नहीं आया ? उन्होंने कहा-कोई तुम्हें कुछ देता है
और तुम उसे स्वीकार नहीं करते तो वह देने वाले के पास ही तो रह जाती है। तुमने गाली दी। हमने स्वीकार नहीं की तो तुम्हारी गाली किसके पास जाएगी? __ इस तितिक्षा ने व्यवहार को परिवर्तित कर दिया। व्यक्तित्व निर्माण का प्रश्न बहुत जटिल प्रश्न है व्यक्तित्व के निर्माण का। कैसे निर्माण करें, जिससे व्यवहार में आग्रह न हो, लचीलापन हो। कुछ व्यक्ति इतने आग्रही होते हैं कि अपनी बात को मजबूती से पकड़ लेते हैं, छोड़ते ही नहीं। कुछ व्यक्तियों में अहं प्रबल होता है। वे अपने को बहुत उत्कृष्ट दिखाते हैं। उनकी आंतरिक पृष्ठभूमि यही होती है कि मैं उत्कृष्ट हूं। जैन आचार्यों में एक विवाद उभरा-मुनि कपड़ा रखे या नहीं। वस्त्र न रखने वालों ने यह प्रदर्शित किया कि वे बहुत ज्यादा उत्कृष्टता का पालन कर रहे हैं। एक आचार्य ने अनेकान्त दृष्टि से कहा-ऐसा मत करो। कोई एक वस्त्र रखता है, कोई दो वस्त्र रखता है, कोई तीन वस्त्र रखता है, कोई अवस्त्र-अचेल रहता है। वस्त्र रखता है
व्यक्तित्व का निर्माण : ६३
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