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अनेकांत की प्रणाली समूह में व्यक्ति छिपा हुआ है और व्यक्ति की पृष्ठभूमि में समूह छिपा हुआ है। दोनों जुड़े हुए हैं। समाजशास्त्रियों ने कहा-व्यक्ति सामाजिक प्राणी है। यह एक सचाई है। इसे अस्वीकार नहीं किया जा सकता। दूसरी सचाई यह है-व्यक्ति-व्यक्ति मिलकर समाज बनता है। हम कहीं-कहीं व्यक्ति को प्रधान और समाज को गौण कर देते हैं। कहीं समाज को प्रधान और व्यक्ति को गौण कर देते हैं। यह अनेकान्त की प्रणाली है। जहां हम व्यक्ति की चर्चा करें, वहां समाज को अस्वीकार नहीं किया जा सकता और जहां समाज की चर्चा करें, वहां व्यक्ति का लोप नहीं किया जा सकता। केवल हमारा कोण प्रधान और गौण का होता है। जहां एक प्रधान होता है, दूसरा गौण हो जाता है। इस अनेकान्त की भाषा और प्रणाली को समझकर ही हम व्यक्ति और समाज की सम्यक् मीमांसा कर सकते हैं। व्यक्तित्व का अर्थ व्यक्ति की अपनी कुछ विशेषताएं हैं। वे समाज में नहीं होती, नितान्त वैयक्तिक होती हैं। शरीर वैयक्तिक होता है, समाज का नहीं होता। उसकी सीमा है, पर वह होता है वैयक्तिक। चिन्तन वैयक्तिक होता है, भाव और कर्म वैयक्तिक होते हैं। सहिष्णुता, विनम्रता आदि गुण व्यक्ति की विलक्षणताएं हैं। व्यक्तित्व का अर्थ है-व्यक्ति की विशेषताओं और विलक्षणताओं का समन्वय। इसी का नाम है व्यक्तित्व । व्यक्तित्व का दूसरा रूप व्यक्तित्व का दूसरा रूप है व्यवहार। व्यक्ति की विशेषताएं व्यवहार में प्रतिबिम्बित होती हैं, अभिव्यक्ति व्यवहार में होती है। विशेषताएं अन्तर्हित रहती हैं और वे बाहर आती हैं व्यवहार में । व्यवहार समाज को जोड़ने वाला तत्त्व है। समाज एक चित्र का निर्माण करता है। उसे भित्ति या आधार देता है हमारा व्यवहार। शरीर का व्यवहार कैसा है ? वाणी, चिन्तन या भावना का व्यवहार कैसा है, इस पर व्यक्तित्व का मापन और मूल्यांकन होता है। समाज और है क्या ? व्यवहार का प्रतिफलन ही तो है। एक का दूसरे के
६२ : नया मानव : नया विश्व
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