________________
व्यक्तित्व का निर्माण
व्यक्ति और समाज, बिन्दु और सिन्धु-इन दोनों में गहरा संबंध है। समुद्र बहुत विशाल है। बिन्दु उसकी छोटी इकाई है। किन्तु समुद्र के लिए बिन्दु का उतना ही मूल्य है, जितना विस्तार का मूल्य है। विश्व और व्यक्ति को कभी पृथक्-पृथक् नहीं देखा जा सकता। इनको पृथक् किया भी नहीं जा सकता। ये शब्द बहुत प्रसिद्ध हैं-पिण्ड और ब्रह्माण्ड । 'यत् पिण्डे तत् ब्रह्माण्डे, यत् ब्रह्माण्डे तत् पिण्डे।' जो पिण्ड में है, वह ब्रह्माण्ड में है और जो ब्रह्माण्ड में है, वह पिण्ड में है। अनेकान्त के अनुसार व्यक्ति और समूह में, पिण्ड और ब्रह्माण्ड में इतना अनन्य संबंध है कि इसको कभी तोड़ा नहीं जा सकता। अंगुली अकेली लगती है, किन्तु वह पूरे विश्व के साथ जुड़ी हुई है। कहा जा सकता है-एक अंगुली हिलती है तो पूरा विश्व हिल जाता है। भाष्यकारों ने एक बहुत सुन्दर तत्त्व का प्रतिपादन किया-मुनि या कोई भी व्यक्ति जब कपड़े को फाड़ता है तो फाड़ने के कारण कुछ परमाणु स्कन्ध उससे इतनी दूर चले जाते हैं, हजारों-हजारों मील की यात्रा कर किसी जलाशय में चले जाते हैं और जलाशय को प्रकंपित कर देते हैं। हमारा गहरा संबंध है इन सबके साथ। इसी से फलित होता है पर्यावरण का सिद्धान्त। एक-दूसरे के साथ इतना गहरा संबंध है कि किसी को क्षतिग्रस्त मत करो, किसी को बाधा मत पहुंचाओ, किसी को पीड़ित मत करो। सबके साथ जो संबंध है, उस सम्बन्ध की अनुभूति करो। व्यक्ति और समाज की भी यही स्थिति है।
व्यक्तित्व का निर्माण : ६१
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org