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________________ हानिकारक सिद्ध हुए हैं। नशे के परिणाम अवसाद (डिप्रेसन), अकर्मण्यता, आलस्य, मतिभ्रम और स्नायविक दुर्बलता-ये सारे नशे के बुरे परिणाम हैं। शराब ज्यादा पीने से लीवर खराब हो जाता है। तम्बाकू पीने से फेफड़े और हृदय के कैंसर का खतरा रहता है। कोई भी नशीला पदार्थ ऐसा नहीं है, जो शरीर के किसी न किसी अवयव को क्षतिग्रस्त या विनष्ट न करता हो। प्रवृत्ति के जगत् में जाएं तो नशा बहुत अच्छा लगता है, आकर्षक लगता है। आज के इस व्यावसायिक जगत् में गलाकाट प्रतियोगिता, प्रतिस्पर्धा और विज्ञापन के युग में मानवहित और समाज कल्याण की बात गौण हो गई है। जैसे भी हो, बाजार में अपना प्रभुत्व स्थापित करना, अपने उत्पाद की अधिकाधिक खपत और लाभ अर्जित करना ही एकमात्र उद्देश्य रह गया है। व्यवसाय है अपराध और नशा अपराध और नशा-ये दोनों व्यवसाय से जुड़े हुए हैं। अपराध भी आज व्यवसाय से जुड़ गया है। बम्बई जैसे बड़े शहरों में बड़ी-बड़ी कंपनियां, मिलें, और प्रापर्टी डीलर अपने व्यवसाय में माफिया सरगनाओं की मदद लेते हैं। कोई भी समझदार नागरिक समाज के कानून को नहीं तोड़ना चाहता। सामाजिक व्यवस्था को भंग करना अपराध है किन्तु जब चेतना विकृत बन जाती है, तब व्यक्ति समाज के नियमों को तोड़ता है और अपराधी बनता है। अपराध का मतलब ही है समाज की व्यवस्था का अतिक्रमण करना, उसके नियमों और कानूनों को तोड़ना। चोरी, डकैती, हत्या, बलात्कार आदि-आदि जितने भी अपराध हैं, वे विकृत चेतना के परिणाम हैं। स्वस्थ चेतना कभी भी इन अपराधों में नहीं जा सकती। विश्वव्यापी समस्या अणुव्रत के सामने एक प्रश्न है-अपराध की रोकथाम कैसे हो ? सरकार अपराधों की रोकथाम करती है, डंडे के बल पर । संसार के हर देश में इनकी कहां से आती है अपराध चेतना ? : ५३ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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