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रोकथाम पर भारी-भरकम बजट बनते हैं। दो ही मदों पर सबसे ज्यादा खर्च किया जाता है-(१) युद्ध के लिए, (२) अपराधों की रोकथाम के लिए। तस्करी रोकने के लिए सरकार कितना प्रयत्न करती है, किन्तु समाचार पत्रों को पढ़ें, प्रतिदिन अखबारों में ऐसी खबरें छपती हैं-आज इतनी हेरोइन पकड़ी गई, इतनी मात्रा में चांदी पकड़ी गई या इतने हथियार पकड़े गए। यह केवल भारत की ही नहीं, पूरे विश्व की समस्या बनी हुई है। नशा मुक्ति के प्रयत्न जब तक व्यक्ति की चेतना मादक पदार्थों की ओर उन्मुख है, उसे रोकना कभी संभव नहीं हो सकेगा। दण्ड और शक्ति के बल पर इसे कभी रोका नहीं जा सकेगा। इसे रोकने का कोई सशक्त अभिक्रम हो सकता है तो वह केवल पवित्र चेतना वाले संगठनों का हो सकता है। अणुव्रत ने व्यसन-मुक्ति का कार्यक्रम अपने हाथ में लिया, बहुत अभियान चलाए गए, कुछ सफलता भी मिली। किन्तु यह अनुभव भी हुआ कि यह बहुत जटिल काम है। एक बार नशे की आदत पड़ गई, अपराध की आदत हो गई तो उसे सहज ही छोड़ पाना संभव नहीं होता। उसे छुड़ाने के लिए विशेष उपाय जरूरी हैं। राजस्थान में अफीम छुड़ाने के लिए कुछ उपाय
और अभिक्रम चल रहे हैं। और भी अनेक स्थानों पर इस तरह के प्रयत्न चल रहे हैं। इस कार्य के लिए अन्य बातों के साथ-साथ विशेष शिविरों का आयोजन भी बहुत जरूरी है। प्रेक्षाध्यान के शिविर इसमें बहुत सफल बनते हैं।
कान पर ध्यान करें हमारे शरीर का एक प्रमुख अवयव है-कान। प्रेक्षाध्यान में इसे अप्रमाद केन्द्र कहा जाता है। जागरूकता का सबसे बड़ा केन्द्र है हमारा कान। चश्मा लगाने के अतिरिक्त सामान्यतः लोग इसका किसी और काम में उपयोग नहीं करते । कान की खिंचाई भी शाब्दिक और मुहावरों में प्रयुक्त होकर रह गई है। प्राचीन समय में पाठशाला में गुरु जरूर कान खींचते थे। आज वहां भी यह बन्द हो गया है। यदि कान खिंचाई करें तो लेने के देने पड़ जाएं।
५४ : नया मानव : नया विश्व
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