SearchBrowseAboutContactDonate
Page Preview
Page 70
Loading...
Download File
Download File
Page Text
________________ नशे की ओर ले जाता है। तनावों से जूझते आदमी को ऐसा अद्भुत आनन्द मिले तो उसे और क्या चाहिए ? विवशता की स्थिति हमारे मस्तिष्क में अनेक प्रकोष्ठ हैं। हमारी सारी प्रवृत्तियां कर्म-शरीर के स्पन्दनों से प्रभावित होती हैं। कर्म शरीर के स्पन्दन हमारे चित्त को प्रभावित करते हैं, उसके जितने स्पंदन आते हैं, उतने ही प्रकोष्ठ हमारे शरीर में बने हुए हैं। हमारा शरीर अरबों-खरबों न्यूरोन्स और प्रकोष्ठों का एक जाल है। हमारे मस्तिष्क में सुख के संवेदन का प्रकोष्ठ भी है, दुःख-संवेदन का प्रकोष्ठ भी है। ये प्रकोष्ठ मादक द्रव्यों का सेवन करने से उद्दीप्त होते हैं और एक अलौकिक आनन्द की अनुभूति देते हैं। आदमी एक बार अगर उस चरम आनन्द की स्थिति में पहुंच जाता है तो फिर बार-बार वहां पहुंचने की इच्छा जाग जाती है। धीरे-धीरे एक विवशता की स्थिति बन जाती है, उसे छोड़ना मुश्किल हो जाता है। अगर इन मादक वस्तुओं के द्वारा यह अलौकिक आनन्द सदा प्राप्त होता रहता तो शायद उन्हें छोड़ने के लिए कहना समझदारी की बात नहीं होती। किन्तु इनका परिणाम अच्छा नहीं होता। चिन्तन के दो पहलू भारतीय चिन्तन में दो पहलुओं से विचार किया गया-एक प्रवृत्ति के पहलू से और दूसरा परिणाम के पहलू से। एक वस्तु आपादभद्र है। प्रारंभ में बहुत अच्छी लगती है, किन्तु परिणाम में बहुत विकृत बन जाती है। एक वस्तु आपाद में अभद्र होती है, परिणाम में भद्र होती है। पहले अच्छी नहीं लगती, किन्तु परिणाम उसका बहुत अच्छा होता है। उदाहरण के लिए चीनी और आंवला को ले सकते हैं। आयुर्वेद में द्रव्य के विपाक पर बहुत विचार किया गया है। विपाक की दृष्टि से चीनी अम्लता पैदा करती है और आंवला मधुरता पैदा करता है। हाइपर एसिडिटी में आंवला दिया जाता है और उससे लाभ होता है। चीनी ज्यादा खिलाओ तो और बढ़ जाएगा। मादक वस्तुओं का परिहार इसलिए करना चाहिए कि उनका परिणाम अच्छा नहीं होता। जितने भी नशीले द्रव्य अब तक प्रकाश में आए हैं, वे सब इस दृष्टि से ५२ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
Copyright © Jain Education International. All rights reserved. | Privacy Policy