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काम कर रही है विक्षिप्त चेतना इस सारी स्थिति को योगशास्त्र में बहुत व्यवस्थित ढंग से विवेचित किया गया है। योगशास्त्र में चित्त की अनेक अवस्थाएं बतलाई गई हैं। चित्त मूढ़ होता है, विक्षिप्त और यातायात होता है। आचार्य हेमचन्द्र आदि ने भी इनका वर्णन किया है। समाज की सामान्य चेतना को देखें तो लगता है विक्षिप्त चेतना ज्यादा काम कर रही है। जहां चित्त की चंचलता है, वहां विक्षिप्त चेतना काम करती है। विक्षिप्त चेतना में विकृति आने की बहुत संभावना रहती है। चेतना एकाग्र बन जाए तो विकृति आने की संभावना बहुत कम हो जाती है या समाप्त हो जाती है। कारण है मानसिक विक्षेप चंचलता और एकाग्रता-इन दो बिन्दुओं के आधार पर मनुष्य के सारे व्यवहार का विश्लेषण करें तो पता चलेगा-एकाग्रता में न केवल अपराध बल्कि असामान्य मानसिक अवस्थाएं समाप्त हो जाती हैं। जहां चंचलता है, विक्षेप है, वहां असामान्य चेतना की स्थिति भी बन सकती है, अपराध-चेतना की स्थिति भी बन सकती है, गलत रास्ते पर भी आदमी जा सकता है। अपराध का सबसे बड़ा कारण है विक्षेप या चंचलता। चंचलता में हर स्थिति मन को बाधित करती है और मन उसे पकड़ लेता है। अपराध की चेतना का एक बहुत बड़ा कारण है मानसिक विक्षेप। चंचलता में भी बहत तारतम्य होता है। मन्द, मध्यम और तीव्र-चंचलता की अनेक कोटियां बन जाती हैं। जहां चंचलता मन्द है, वहां अधिक हानि नहीं होती। चंचलता मध्यम है तो हानि के दरवाजे खुल जाते हैं, अपराध के दरवाजे खुल जाते हैं। जहां चंचलता तीव्र है, विक्षेप तीव्र है, वहां सब कुछ संभव हो सकता है।
अपराध चेतना : मूल कारण
मादक वस्तुओं का सेवन, मनस्ताप आदि-आदि निमित्तों से अपराध ज्यादा जोर पकड़ते हैं और उन्हीं पर हमारा ध्यान केन्द्रित होता है। हम निमित्तों से ज्यादा परिचित हैं। मूल कारण से कम परिचित हैं। यदि मूल कारण पर जाएं तो निमित्त अप्रभावी बन जाएंगे और हमें बदलने में कहीं अधिक
कहां से आती है अपराध चेतना ? : ४६
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