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कहां से आती है अपराध चेतना ?
पवित्र चेतना जीवन का सबसे बड़ा वरदान है। दुनिया में अनेक उपलब्धियां होती हैं, किन्तु चेतना की पवित्रता से बड़ी कोई उपलब्धि नहीं है। जब-जब चेतना में विकृति आती है, सारी उपलब्धियां अर्थहीन और व्यर्थ बन जाती हैं। मस्तिष्क की निर्मलता, चेतना की विशुद्धि जीवन की पवित्रता का मूल स्रोत है। चेतना के स्तर हमारी चेतना के अनेक स्तर हैं। इन्द्रिय चेतना का स्तर सामान्य स्तर है। एक विशेष स्तर है, जिसमें अन्तर्दृष्टि (इन्ट्यूशन पावर) विकसित हो जाती है। पूर्वाभास, दूर का ज्ञान और व्यवहित वस्तु का ज्ञान संभव बन जाता है। चेतना की उससे अधिक विकसित अवस्था है-अतीन्द्रिय ज्ञान। इसमें बाहरी निमित्त समाप्त हो जाते हैं। आत्मा की वह शक्ति जागृत होती है, जिससे हमारा ज्ञान निरावरण हो जाता है। अतीन्द्रिय चेतना में कोई अपराध संभव नहीं होता। अतदृष्टि की चेतना में भी अपराध संभव नहीं होता। किन्तु हमारी जो सामान्य चेतना है, जिसमें हम ज्ञेय को, पदार्थ को जान लेते हैं, जिससे हमारा सामान्य व्यवहार चलता है, उस चेतना में दोनों संभावनाएं रहती हैं। यदि अनुकूल योग मिलता रहे तो चेतना ठीक काम करती है और योग प्रतिकूल मिल जाए तो चेतना विकृत भी बन जाती है।
४८ : नया मानव : नया विश्व
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