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संघर्ष ने इतनी विभीषिका मचाई है कि कुछ ही दिनों में लाखों आदमी कट-मर गए। आज विश्व के सामने यह प्रश्न उठ रहा है कि ये गरीव और छोटे देश इतनी हिंसा कर आखिर क्या पाना चाहते हैं ? इस प्रश्न का कोई उत्तर नहीं मिल रहा है। संयुक्त राष्ट्रसंघ हैं, तमाम शक्तिशाली देश हैं, जिनका विश्व के अधिकांश देशों पर दबाव है, प्रभुत्व है। इन देशों की हिंसा को रोकने में उन्होंने कितना योगदान किया, यह भी एक विचारणीय प्रश्न है।
बड़े देशों में कोई संघर्ष होता है तो अमेरिका, इंग्लैण्ड जैसी शक्तियां तुरन्त बीच-बचाव करने के लिए दौड़ पड़ती हैं। अफ्रीकी राष्ट्र में मनुष्य का मूल्य इतना कम है कि उसके लिए कोई चिन्ता करने की जरूरत नहीं समझता। उन्हीं के लड़ाई-झगड़े को रोकने के लिए प्रयत्न किए जाते हैं, जिनका बाजार में मूल्य ज्यादा है। जिनका बाजार में मूल्य कम है, खनिज-खाद्यान्न और दूसरी आवश्यक चीजों का जो उत्पादन नहीं कर सकते, हर दृष्टि से पिछड़े हैं, उनके लिए कोई चिन्ता नहीं होती।
इन सारी स्थितियों ने आज चिन्तन को आन्दोलित किया है। आखिर दुनिया में बढ़ती जा रही यह हिंसा कहां जाकर रुकेगी ? कब विराम लेगी ? इस परिप्रेक्ष्य में अहिंसा का प्रश्न और भी अधिक ज्वलंत बन गया है। इस बात को सब समझ रहे हैं कि इसका एक मात्र उपाय अहिंसा ही है। यह उपाय नहीं हुआ तो प्राकृतिक प्रलय से पूर्व आदमी स्वयं प्रलयंकर बन जाएगा और सारी सृष्टि को समाप्त कर देगा। इसलिए अहिंसा का विकास बहुत जरूरी है। प्रश्न है कि यह विकास कैसे हो ? समाधान अहिंसा है, किन्तु उसकी प्रक्रिया क्या हो ? यह जटिल प्रश्न है।
नया नक्षत्र एक वार पूज्य गुरुदेव ने कहा था-अहिंसा की केवल चर्चा ही पर्याप्त नहीं है। अहिंसा का अनुसंधान होना चाहिए, उसके प्रशिक्षण की व्यवस्था होनी चाहिए, उसका प्रयोग होना चाहिए। जैसे ही ये तीन सूत्र आए, चिन्तन के क्षेत्र में एक नया नक्षत्र उदित हो गया। सुप्रसिद्ध साहित्यकार
अहिंसा प्रशिक्षण : एक सार्वभौम आयाम : ३७
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