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अहिंसा प्रशिक्षण : एक सार्वभौम आयाम
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अहिंसा और आत्मनिरीक्षण - ये दो नहीं हैं । हिंसा और परदर्शन को भी पृथक् नहीं किया जा सकता । जिस व्यक्ति ने सदा दूसरों को देखा है, पदार्थ को देखा है, वह हिंसा में उतर जाएगा। जिसने अपने आपको देखना शुरू किया है, अपना दर्शन, अपना निरीक्षण किया है, वह हिंसा से दूर होता चला जाएगा, उसके जीवन में अहिंसा उतरती चली जाएगी। आज पूरे विश्व में अहिंसा एक चर्चित शब्द बन गया है। हजारों वर्ष पहले अहिंसा की शिक्षा, प्रशिक्षण और सिद्धान्त बतलाए गए हैं । महात्मा गांधी ने अहिंसा को एक व्यापक स्वरूप प्रदान किया और विश्व के सामने अहिंसा की शक्ति को तेजस्वी रूप में प्रस्तुत किया । वर्तमान दो-तीन दशकों में जिस प्रकार हिंसा बढ़ी है, अहिंसा की अभीप्सा और अधिक जागृत हुई है ।
विचारणीय प्रश्न
हम इस बात को जानते हैं - प्रथम विश्वयुद्ध में बहुत नरसंहार हुआ । दूसरा महायुद्ध हुआ तो उसमें भी भयंकर नरसंहार हुआ । इस बात को कम लोग जानते हैं कि दूसरे महायुद्ध के बाद आज तक जितना नरसंहार हुआ, उतना दोनों महायुद्धों में नहीं हुआ। छोटे-छोटे राष्ट्रों ने इतनी लड़ाइयां लड़ी हैं कि उनमें लाखों-लाखों लोगों का नरसंहार हुआ है । इन दिनां रवांडा और सोमालिया में जो नरसंहार हुआ, उसे सुनकर रोमांच हो जाता है। दो जातियों के सत्ता संघर्ष में गृहयुद्ध छिड़ गया । हास्पिटल में हजा लोग घायलावस्था में एक-दूसरे को मार रहे हैं । सत्ता संघर्ष से प्रेरित जातीय
३६ : नया मानव : नया विश्व
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