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के प्रधानमंत्री या राष्ट्रपति तो.जेल में भी हैं। पड़ोस में बंगलादेश के राष्ट्रपति इरशाद अहमद का उदाहरण सामने हैं। . एक मात्र विकल्प प्रश्न है-इतना बौद्धिक विकास होने के उपरान्त भी ऐसा क्यों हो रहा है ? इसलिए हो रहा है कि आज तक हमने वांछनीय मस्तिष्क की परत को जगाने का प्रयत्न कम किया है और अवांछनीय मस्तिष्क की परत को उत्तेजना देने का प्रयत्न ज्यादा किया है। अणुव्रत का यह जो संकल्प है स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाने का, कानून से व्रत की चेतना को जगाने का और मस्तिष्क की पाशविक परत को निष्प्रभावी बनाकर मानवीय परत को विकसित करने का, बस यही नए मनुष्य का जन्म है। इस जन्म के आधार पर हम कल्पना कर सकते हैं कि नए युग का प्रारंभ, नए समाज का प्रारंभ होगा। काम बहुत कठिन है, सरल नहीं है, किन्तु मुझे लगता है कि इसका एकमात्र विकल्प है तो यही है। कषाय का उपशमन, पाशविक ब्रेन को निष्क्रिय करने की दिशा में प्रस्थान, शिक्षण और प्रशिक्षण, अगर इन बातों पर हमारा ध्यान केन्द्रित हो तो अणुव्रत अनुशास्ता का स्वप्न साकार हो सकता है, नए मनुष्य का जन्म संभव बन सकता है।
नए मनुष्य का जन्म : ३५
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