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सूक्ष्म का आर जाए जब तक स्थूल जगत् से सूक्ष्म जगत् में प्रवेश नहीं करेंगे, समस्या का समाधान कठिन है। विज्ञान ने सूक्ष्म जगत् में प्रवेश किया। परिणामस्वरूप आज बहुत सारी सचाइयां उजागर हुई हैं, बहुत महत्त्वपूर्ण आविष्कार हो गए हैं और बहुत बड़ा निर्माण हो गया है। यदि विज्ञान स्थूल में अटका रहता तो यह संभव नहीं होता। कभी धर्म ने भी सूक्ष्म जगत् में प्रवेश किया था। धर्म का लक्ष्य और उद्देश्य ही था स्थूल से सूक्ष्म की ओर जाना। पर वह भी भटक गया, स्थूल में ही उलझ कर रह गया। जो आंखों के सामने है, जो तृप्ति दे रहा है, जो अच्छा लग रहा है, उसमें उलझ गए। भीतर में हमारा प्रवेश ही नहीं हो रहा है। वटवृक्ष है बीज में उपनिषद् का प्रसंग है। ऋषि उद्दालक ने अपने पुत्र श्वेतकेतु से कहा-तुम जाओ और सामने जो वटवृक्ष दिखाई दे रहा है, उसका एक फल तोड़कर लाओ। श्वेतकेतु गया और फल तोड़कर ले आया। ऋषि बोले-अब इसे तोड़ो । श्वेतकेतु ने तोड़ा। उद्दालक ने पूछा-इसमें क्या देख रहे हो ? श्वेतकेतु ने कहा-इसमें बीज देख रहा हूं। आदेश दिया-बीज को तोड़ो। बीज को तोड़ा। पूछा-इसमे क्या देख रहे हो ? श्वेतकेतु बोला-इसमें तो कछ भी नहीं है। उद्दालक ने कहा-जो कुछ है, इसी में है। तुम स्थूल में गए हो, सूक्ष्म में जाओ, तुम पाओगे-इसमें एक वटवृक्ष है।
हम उस सूक्ष्म में नहीं जा रहे हैं, जहां बदलने की क्षमता है। जहां जाने पर बदला जा सकता है, परिवर्तन किया जा सकता है, वहां हम नहीं जा रहे हैं और जहां बदला नहीं जा सकता, उस स्थूल की परिक्रमा चल रही है। कानून की प्रकृति : व्रत की प्रकृति अणुव्रत दर्शन में इस सूक्ष्म की ओर ध्यान केन्द्रित किया गया है। व्रत का तात्पर्य ही है आत्मा का संकल्प। यह कोई कानून नहीं है। कानून की प्रकृति अलग होती है और व्रत की प्रकृति अलग होती है। कानून वह होता है, जहां आदमी देखे, वहां कानून का पालन और जहां न देखे, वहां उसका उल्लंघन।
नए मनुष्य का जन्म : ३३
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