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दना चाहिए, उस पर हमारा ध्यान नहीं जा रहा है आर जिस पर हम ध्यान देना तो चाहिए, किन्तु एक सीमा तक ध्यान देना चाहिए, उस पर समग्र ध्यान केन्द्रित किया जा रहा है।
बदलाव के कारक तत्त्व अणुव्रत कहता है-जब तक व्यक्ति अच्छा नहीं बनेगा, व्यवस्था बन जाने पर भी वह अच्छी नहीं रह पाएगी, टिक नहीं पाएगी। क्या संविधान राष्ट्र का अच्छा नहीं है ? क्या कानून की न्यायसंहिता अच्छी नहीं है ? ये बहुत अच्छे हैं किन्तु महत्त्व इस बात का है संविधान को क्रियान्वित करने वाले, न्याय देने वाले कैसे हैं ? मूल प्रश्न है-इस स्थिति का सम्यक्करण कैसे किया जाए ? इसका समाधान सूत्र है-रेप्टेलियन मस्तिष्क की परत को सक्रिय बनाएं। इस स्थिति को न राजनीतिक दल बदल सकते हैं, न बड़े-बड़े इंस्टीट्यूट और न संस्थान बदल सकते हैं। इस स्थिति में बदलाव के कारक तत्त्व तीन हैं
प्राथमिक शिक्षा .संचार माध्यम •धर्मगुरु
शिक्षा नए मस्तिष्क की संरचना में प्राथमिक शिक्षा का बहुत महत्त्व है। शिक्षा के द्वारा बच्चे के मस्तिष्क का विकास होता है। उस विकास में किस परत को ज्यादा प्रभावी बनाया जा सके, इसकी सारी व्यवस्था पांच-दस वर्ष की अवस्था के बीच में होती है। अगर हमारी प्राथमिक शिक्षा समयक् रूप से हो जाए तो फिर महाविद्यालयी और विश्वविद्यालयी शिक्षा के लिए चिन्ता करने की जरूरत नहीं है। सारी प्रक्रिया ठीक चलेगी। सबसे महत्त्वपूर्ण समय है प्राथमिक शिक्षा का। हायर सेकेण्डरी तक बच्चे को ठीक बनाया जाए, उसके मस्तिष्क पर ध्यान दिया जाए तो समाज व्यवस्था और अर्थ-व्यवस्था को बदला जा सकता है, शोपण को मिटाया जा सकता है, भ्रष्टाचार और अपराध पर काबू पाया जा सकता है।
नए मनुष्य का जन्म : ३१
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