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हैं हमारे महानगर। ऐसा लगता है न्याय और व्यवस्था नाम की कोई चीज नहीं है, जंगलराज की स्थिति है। ऐसी स्थिति में धरती सचमुच रहने लायक नहीं है। ____ नए मनुष्य की रचना के लिए मस्तिष्क पर ध्यान देना होगा। बहुत-सारे लोग समाज की व्यवस्था में परिवर्तन लाने हेतु प्रयत्नशील हैं । अर्थ-व्यवस्था को बदलने के लिए भी बहुत सारे लोग लगे हुए हैं। इस शताब्दी में समाज व्यवस्था और अर्थ-व्यवस्था को बदलने के लिए अनेक प्रयत्न हुए हैं और हो रहे हैं। वे प्रयत्न कितने सफल हुए हैं, यह एक प्रश्न है। उन प्रयत्नों के बावजूद न तो अभी तक समाज की व्यवस्था बदली है और न अर्थ-व्यवस्था बदली है। गरीबी, भुखमरी और महंगाई पर नियंत्रण की घोषणाएं चुनाव घोषणापत्रों में बन्द पड़ी रह गई हैं। इतना काम अवश्य हुआ है कि गरीब और ज्यादा गरीब हुआ है, अमीर और ज्यादा अमीर
हुआ है।
परिवर्तन के दो उपाय आज अध्यात्म और विज्ञान-दोनों के सन्दर्भ में चिन्तन करें तो इस असफलता के कारण को खोजा जा सकता है। आध्यात्मिक कारण यह है-काम, क्रोध, कषाय, अहंकार, लोभ इन्हें उपशान्त करने की प्रक्रिया समाज नहीं अपना रहा है बल्कि उन्हें और अधिक उद्दीप्त कर रहा है। अगर कषाय को शान्त करने की शिक्षा और प्रक्रिया चले तो समाज-व्यवस्था भी बदल सकती है, अर्थ-व्यवस्था भी बदल सकती है। विज्ञान के सन्दर्भ में इसका कारण है मस्तिष्क के बायें पटल का अत्यधिक सक्रिय होना । मस्तिष्क के दायें पटल को जागृत करने का प्रयत्न नहीं हो रहा है। मेरी दृष्टि में व्यवस्था को बदलने के ये दो उपाय सबसे अच्छे हैं। किन्तु आज स्थिति यह है-मोटर को तो बदला जा रहा है, ठीक किया जा रहा है, किन्तु चलाने वाले के प्रति हम उदासीन हैं। वायुयान बहुत अच्छा बना लें, मोटर, कार बहुत अच्छी और तीव्रगामी बना लें, जलपोत अत्यन्त उन्नत किस्म का बना लें, किन्तु यदि पायलट, ड्राइवर और कप्तान को कुशल नहीं बनाया गया तो ये तीनों विनाश के साधन सिद्ध होंगे। समस्या यही है-जिस पर ध्यान
३० : नया मानव : नया विश्व
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