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का प्रयत्न करूं, जो जानने वाला है। अब तक तो जो जाना जाता है, उस पर काम किया है, अब उस पर काम करना चाहता हूं, जो जानने वाला है।'
नए मानव का सपना एक नया प्रकल्प, नया कान्सेप्ट सामने आता रहा है। महात्मा गांधी ने भी मनुष्य को अच्छा बनाने का मॉडल पेश किया। महर्षि अरविन्द ने मानव से संतोप नहीं माना, उन्होंने अतिमानव की कल्पना की। सब चाहते हैं कि विकास हो और कुछ नया हो। अणुव्रत अनुशास्ता ने भी कल्पना की है-नए मानव का जन्म हो। बड़ी मोहक है नए मानव के जन्म की बात । नए मानव के जन्म का तात्पर्य है-नए मस्तिष्क की संरचना। ऐसा क्यों होता है ? मस्तिष्क विज्ञानियों ने मस्तिष्क की तीन परतें बतलाई हैं
.लिंबिक सिस्टम .रेप्टेलियन .नियोकार्टेक्स
प्रश्न यह है-वर्तमान समाज किस परत से ज्यादा प्रभावित है ? व्यक्ति सोचता है-इतना पढ़ा-लिखा आदमी है, उसने रिश्वत कैसे ली ? उस बुद्धिमान् आदमी ने आत्महत्या कैसे की ? इतने समझदार आदमी ने बैंक डकैती कैसे की ? ये प्रश्न उठते हैं, मानव-मन को झकझोरते हैं। इस प्रश्न का उत्तर प्राचीनकाल में अपने ढंग से दिया गया था। जैन आचार्यों ने कर्मवाद की भाषा में इसका उत्तर दिया-मोहकर्म के प्रभाव से ऐसा होता है। गीता में श्रीकृष्ण से पूछा गया-'न चाहता हुआ भी आदमी पाप करता है, इसका कारण क्या है ? कृष्ण ने उत्तर दिया- 'काम और क्रोध, ये अपराध करा रहे हैं।' आज का वैज्ञानिक न मोह को जानता है, न काम और क्रोध को महत्त्व देता है। उसका निर्णय दूसरा है और वह यह है-जब-जब आदमी मस्तिष्क की रेप्टेलियन परत के प्रभाव में होता है, तब-तब अन्याय और अत्याचार करता है, अतिक्रमण करता है, आतंक फैलाता है। सारे अपराध इस रेप्टेलियन मस्तिष्क के प्रभावकाल में होते हैं।
नए मनुष्य का जन्म : २७
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