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________________ इस अनुप्रेक्षा का चिरकाल तक अभ्यास और प्रयोग किया जाए तो संवेगों को संतुलित किया जा सकता है। जब संवेग संतुलित हो जाते हैं, तो प्रबंधन की एक प्रकृति बन जाती है। अच्छा बेटा : अच्छा पिता हम परिवार की वर्तमान स्थिति का थोड़ा विश्लेषण करें। वर्तमान स्थिति क्या है ? आज माता-पिता अक्सर कहते हैं-हम पुत्रों को कुछ कहने-सुनने की स्थिति में नहीं हैं। सैकड़ों बार बड़े-बड़े लोगों से सुना है-हम पुत्रों को कुछ कह नहीं सकते हैं। आप ही थोड़ा समझाएं। वे बड़े हो गए हैं। हम कैसे कहें ? हम कहेंगे तो भी वे हमारी बात मानेंगे नहीं। दस वर्ष के छोटे-से लड़के के लिए भी यह कहा जाता है-लड़का हमारी बात मानता नहीं है। हम कैसे कल्पना करें संयुक्त परिवार की ? कैसे कल्पना करें अच्छे परिवार और उसके प्रबन्धन की ? यह अनुशासन क्यों नहीं है ? इसलिए नहीं है कि अनुशासन की वृत्ति को जगाया नहीं गया। प्राचीन सूत्र है-जो अच्छा शिष्य नहीं होता, वह अच्छा गुरु नहीं बनता। आज इस बात को बदल कर इस प्रकार कहा जा सकता है-जो अच्छा बेटा नहीं होता, वह अच्छा बाप नहीं बन सकता। अगर प्रारंभ से ही शिक्षण मिले, छोटे बच्चे को इस सूत्र का अभ्यास कराया जाए तो वह कभी भी आज्ञा और अनुशासन का अतिक्रमण नहीं करेगा। माता-पिता स्वयं ही मैत्री का प्रयोग नहीं करते, पुत्र के हित की चिन्ता नहीं करते, तब अनुशासन और आदर का भाव कैसे होगा ? सबसे बड़ी कमी है मैत्री की, हितचिन्तन की। यह चिन्ता नहीं है कि इसका भविष्य कैसा होगा ? चिन्ता करते हैं उसे पब्लिक स्कूल में पढ़ाने की, कान्वेण्ट, मेयो और दून में पढ़ाने की। वह ऊंची पढ़ाई करके ऊंची कमाई करे, अच्छी लड़की से शादी हो। चिन्ता है प्रिय की चिन्ताएं दो प्रकार की होती हैं-प्रिय की चिन्ता और हित की चिन्ता। प्रिय की चिन्ता तो बहुत करते हैं, हित की चिन्ता नहीं करते। जीवन-निर्माण हित की चिन्ता है। २४ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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