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कितनी भविष्यवाणियों को बदला गया है।
पूज्य गुरुदेव राजलदेसर चातुर्मास कर रहे थे। ज्योतिष की एक भविष्यवाणी आई-राजलदेसर से विहार नहीं होगा। वहां से विहार हो गया तो फिर भविष्यवाणी की गई-सुजानगढ़ मर्यादा-महोत्सव नहीं कर सकेंगे। वह भी संपन्न हो गया। तीसरी भविष्यवाणी हुई-दिल्ली नहीं आ सकेंगे। दिल्ली भी सुख-समाधे पहुँच गए। ___ इसका विश्लेषण करूं तो मुझे कहना चाहिए-भविष्यवाणी करने वाले भी बिल्कुल गलत नहीं थे। मैं ज्योतिष को थोड़ा जानता हूं, विश्वास भी करता हूं। भविष्यवाणी बिल्कुल झूठी नहीं थी, किन्तु झूठी कर दी गई। प्रबल पुरुषार्थ, प्रबल मनोबल और दृढ़ आत्मविश्वास ने उस भविष्यवाणी के किर्चे-किर्चे उड़ा दिए। अगर मनोबल नहीं होता, आत्मबल और प्रबल आत्मविश्वास नहीं होता तो यह भविष्यवाणी सत्य सिद्ध हो जाती। उनकी भविष्यवाणी सोलह आना सही निकलती और फिर वे गर्व के साथ कहते-देखो, हमने तो पहले ही कह दिया था। अब वे भविष्यवक्ता चुप हैं। अब कैसे बोलें ?
कारण क्या है ? हम दोनों पक्षों पर विचार करें। ज्योतिष को भी दोष न दें। किन्तु महावीर ने जो सिद्धान्त दिया, उस सिद्धान्त को ठीक समझें। हमारा प्रबल पुरुषार्थ है, आत्मविश्वास है, दृढ़ निश्चय है और साथ में संयम है तो इन सबको बदला जा सकता है, पीछे छोड़ा जा सकता है। हमारी यह धारणा बननी चाहिए-संवेगों के तारतम्य को बदला जा सकता है, उसे संतुलित किया जा सकता है। सामंजस्य की अनुप्रेक्षा इसके लिए अपेक्षित है अभ्यास और प्रयोग। अभ्यास करना होगा। क्या आप जानते हैं-इन तथाकथित भविष्यवाणियों को बदलने के लिए कितना प्रयोग और अभ्यास हुआ है। घण्टों-घण्टों कायोत्सर्ग का प्रयोग हुआ है और कायोत्सर्ग में अनुप्रेक्षा के प्रयोग हुए हैं, मनोबल के प्रयोग हुए हैं। बिना अभ्यास के कोई बदल नहीं सकता। प्रेक्षाध्यान में एक अनुप्रेक्षा है सामंजस्य की अनुप्रेक्षा, संवेगों को संतुलित करने की अनुप्रेक्षा, समन्वय की अनुप्रेक्षा।
पारिवारिक सामंजस्य : २३
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