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________________ क्रोध को सफल न बनाना शरीर का संयम है। संयम को हम ठीक ढंग से समझें, यह प्रबंधन का प्राणसूत्र बन सकता है। समता प्रबंधन का एक सूत्र है समता। मैं यह नहीं मानता-किसी परिवार में बिल्कुल भेदभाव नहीं होता। भेदभाव थोड़ा-बहुत तो हो सकता है, कुछ मन में भी आ सकता है। किन्तु ऐसा भेदभाव न रहे, जो दूसरों को विषम लगे और निरंतर चलता रहे। समाज मनोविज्ञान में जहां सामूहिक मनोवल की चर्चा है, वहां यह बतलाया गया है-भेदभाव न्यून होना चाहिए। संवेग संतुलन का अभ्यास हम इससे भी आगे बढ़ें। प्रबन्धन का एक नया सूत्र जोड़ें और वह है संवेगों को संतुलित करने का अभ्यास। आज यह नहीं हो रहा है और यही सबसे ज्यादा आवश्यक है। संवेगों का तारतम्य है, यह मानकर यहीं रुक जाएं तो फिर समीकरण नहीं होगा। हम ऐसा प्रशिक्षण दें, जिससे संवेगों को संतुलित बनाया जा सके। प्रश्न है-यह कैसे हो सकता है ? इसके लिए पहले धारणा बनाएं-संवेगों को संतुलित किया जा सकता है। यह श्रद्धा नहीं है, हमने यह मान लिया-संवेग तो ऐसे ही रहेंगे, क्रोध, भय, वासना-इनमें बदलाव संभव नहीं है। इस स्थिति में संवेग को संतुलित करने के लिए कोई अवकाश ही नहीं है। बदल सकता है भाग्य जैन साधना पद्धति में एक महत्त्वपूर्ण स्वीकृति है-पुरुषार्थ के द्वारा भाग्य को बदला जा सकता है। मैं मानता हूं-वर्तमान युग के लिए यह सबसे बड़ा सूत्र है कि जन्म-कुंडली को बदला जा सकता है, हाथ की रेखाओं को बदला जा सकता है और ज्योतिष को भी पीछे छोड़ा जा सकता है, भविष्यवाणियों को निरस्त किया जा सकता है। यह धारणा हमारी विकसित हो जाए तो विकास का, परिवर्तन और प्रबंधन का एक नया आयाम हमारे सामने होगा। हम इस सचाई को स्वीकार करें-भविष्य को बदला जा सकता है, न जाने २२ : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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