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________________ कैसे ? श्वास जीवन है, इसके बिना दो क्षण भी जीवन नहीं चलता। किन्तु संयम जीवन कैसे हुआ ? मनुष्य इस सचाई को भुला देता है-रोटी जीवन है, किन्तु रोटी न खाना उससे भी बड़ा जीवन है। पानी जीवन है पर पानी न पीना उससे भी बड़ा जीवन है। श्वास जीवन है पर योग के आचार्यों ने बतलाया-श्वास का संयम करो, कुंभक करो, श्वास लम्बा लो, जीवन और बढ़ जाएगा। श्वास का संयम, आहार का संयम, हमारे जीवन को बढ़ाता है। इच्छा का संयम संयम का एक महत्त्वपूर्ण घटक है इच्छा का संयम। जो इच्छा आए, वह काम न करें। आदमी जा रहा था। कुछ दूर जाकर सड़क पर लेट गया। सामने से तांगा आया। तांगेवाला बोला-हट जाओ। सड़क पर क्यों लेटे हो ? उसने कहा-मेरी इच्छा है। तांगेवाले ने तांगा आगे बढ़ाया। लेटे हुए व्यक्ति ने घबरा कर कहा-अरे, क्या कर रहे हो ? तांगेवाला बोला-मेरी इच्छा है। __ जो व्यक्ति समझदार होता है, वह इच्छाओं की काट-छांट करना जानता है। हर इच्छा को क्रियान्वित नहीं करता। बहुत सारी इच्छाएं पैदा होती रहती हैं। सबकी पूर्ति संभव नहीं होती। समझदार व्यक्ति, संगठन को चलाने वाला या संगठन में चलने वाला व्यक्ति कभी यह दुहाई नहीं देता-मेरी यह इच्छा हुई और मैंने यह काम कर लिया। शरीर का संयम शरीर का संयम भी बहुत जरूरी है। थोड़ा-सा आवेश आया और एक चांटा जड़ दिया। इस उत्तेजना की स्थिति में परिवार बिखर जाता है। हाथ का संयम बहुत जरूरी है। क्रोध जब तक भीतर रहे, तब तक स्वयं का नुकसान करता है। वह बाहर न आए, तब तक किसी अन्य का नुकसान नहीं करता। इसी को आगम की भाषा में कहा गया है-क्रोध का विफलीकरण और क्रोध का सफलीकरण । क्रोध को अपने तक सीमित रखें तो वह विफल बन गया। क्रोध के दो फल हैं-या तो गाली बकना या हाथ-पैर चला देना, मार देना। पारिवारिक सामंजस्य : २१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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