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________________ खलु जीवनम् । संयम प्रबंधन का प्राणतत्त्व है। वर्तमान प्रबंधन में इस सूत्र की उपेक्षा की गई अथवा जितना अपनाना चाहिए, उतना नहीं अपनाया गया। संयम ही जीवन है-यह अणुव्रत का महत्त्वपूर्ण घोष है और एक प्राचीन विचार का नवीनीकरण है। वही संगठन चिरजीवी रहेगा, जिसमें संयम से अनुप्राणित व्यक्तित्व हैं। ऐसा संगठन ही प्रेरणा का स्रोत बन सकता है। वाणी का संयम संयम का एक घटक है वाणी का संयम। चाहे राजनीतिक संगठन हो, सामाजिक, पारिवारिक या धार्मिक संगठन, उसके मुखिया यदि वाणी का संयम नहीं रखते हैं तो संगठन बनेगा ही नहीं और बन भी जाएगा तो बिखर जाएगा, टूट जाएगा, टिक नहीं पाएगा। बहुत जागरूक रहना पड़ता है। कभी-कभी एक शब्द भी संगठन की चूलें हिला देता है। एक भी शब्द ऐसा नहीं निकलना चाहिए, जो संगठन की जड़ों को हिला दे। महावीर के पास लोग आए और गालियां बकीं, बुद्ध के सामने आए और गालियां बकीं, आचार्य भिक्षु को गालियां बकीं। गालियां ही नहीं बकी, मुक्का भी जमा दिया। वे फिर भी मौन और शान्त रहे, कुछ भी नहीं बोले । वाणी का इतना संयम कि एक भी शब्द ऐसा न निकला, जिससे किसी को आंच आती, संगठन कमजोर बनता। एक ही शब्द पर बड़े-बड़े युद्ध हो गए हैं। इतिहास को देखें। महाराणा प्रताप और शक्तिसिंह आपस में लड़े। कोई राज्य के बंटवारे के लिए नहीं लड़े। दोनों ने एक साथ तीर छोड़ा। एक हिरण मारा गया। प्रताप ने कहा-यह मेरे बाण से मरा है और शक्तिसिंह ने कहा-यह मेरे बाण से मरा है। यह विवाद लड़ाई का केन्द्र बन गया। हिरण मैंने मारा या तुमने मारा, इस बात पर विवाद खड़ा हो गया। इस वाणी के विवाद से दोनों भाई एक-दूसरे के दुश्मन बन गए। जीवन है संयम अनेक वार एक प्रश्न आता है-रोटी जीवन हो सकती है, पानी जीवन हो सकता है, क्योंकि इनके बिना जीवन नहीं चलता। लेकिन संयम जीवन २० : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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