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________________ एकीकरण बड़ा कठिन होता है। यह संवेगों का तारतम्य पारिवारिक विघटन का एक बड़ा कारण बनता है। एक व्यक्ति आदेश को तत्काल स्वीकार कर लेता है। दूसरा व्यक्ति हर आदेश पर तरह-तरह के तर्क करता है। इसका उपाय क्या हो ? इस संदर्भ में एक महत्त्वपूर्ण सूत्र दिया गया-यदि संगठन को बनाए रखना है तो कहीं-कहीं उपेक्षा करो। अमुक आदमी अनुकूल नहीं है, फिर भी जैसे-तैसे इसे बनाए रखना है, इसलिए उपेक्षा करो। उपेक्षा का ही दूसरा नाम है मध्यस्थभाव। मध्यस्थ रहो, तटस्थ रहो। यह तटस्थता सम्यक् प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण तत्त्व है। निर्भर है इच्छा पर भगवान् महावीर से एक आचार्य ने निवेदन किया-मैं अमुक प्रदेश में विहार करना चाहता हूं। महावीर ने उसे समझाया किन्तु उसने महावीर की बात को स्वीकार नहीं किया। उसका आग्रह प्रबल बना रहा। महावीर ने देखा-यह आग्रही है। उन्हें हानि दिखाई दे रही थी पर निषेध का कोई उपाय भी नहीं था। महावीर मौन हो गए, उसके निवेदन की उपेक्षा कर दी। इस सन्दर्भ में यह श्लोक कितना मार्मिक है. अर्हतोऽपि प्राज्यशक्तिस्पृशः किं, धर्मोद्योगं कारयेयुः प्रसह्य । दधुः शुद्धं किन्तु धर्मोपदेशं, यत्कुर्वाणाः दुस्तरं निस्तरन्ति ।। अर्हत् बहुत शक्तिशाली होते हैं, किन्तु क्या वे किसी को जबरदस्तों श्रेय का आचरण करवा सकते हैं। वे केवल प्रेरणा दे सकते हैं। अच्छा जीवन जीना मनुष्य की इच्छा पर निर्भर है। क्या कोई भी व्यक्ति किसी को बलपूर्वक अच्छा बना पाएगा। ऐसा होना संभव नहीं है। इसीलिए यथासमय, यथास्थिति उपेक्षा का प्रयोग करना आवश्यक होता है। . प्रबंधन के ये चार सूत्र-मैत्री, प्रमोद, करुणा और उपेक्षा प्राचीन हैं, किन्तु वर्तमान प्रबंधन में इनकी उपयोगिता असंदिग्ध है। यही कारण है, वर्तमान प्रबंधन में कुछ नए सूत्र जोड़े हैं तो कुछ प्राचीन सूत्र ही अपनाए हैं। प्रबंधन का प्राणतत्त्व प्रबंधन का एक महत्त्वपूर्ण सूत्र अणुव्रत ने प्रस्तुत किया। वह है-संयमः ___ पारिवारिक सामंजस्य : १६ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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