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स्वरूप मिल गया है किन्तु प्राचीनकाल में भी प्रबन्धन के महत्त्वपूर्ण सूत्रों को अपनाया गया था। वर्तमान प्रबंधन के सूत्र और प्राचीन प्रबंधन के सूत्र-इन दोनों पर विमर्श अपेक्षित है। वर्तमान प्रबंध के सूत्र हैं-समता, न्याय और करुणा। ये बिल्कुल अध्यात्म के सूत्र हैं और प्रबन्धन के भी महत्वपूर्ण सूत्र हैं। जहां भेदभाव है, वहां प्रबंधन सम्यक् नहीं चलेगा। जहां न्याय नहीं है, प्रबन्ध अच्छा नहीं होगा। जहां करुणा नहीं है, वहां प्रबंध कैसे होगा ? क्रूरता में कोई भी व्यवस्था चल नहीं सकती। जिस परिवार में न्याय नहीं है, समता और करुणा नहीं है, वह अच्छा नहीं हो सकता। उसकी व्यवस्था भी अच्छी नहीं हो सकती। प्रबंधन के प्राचीन सूत्र वर्तमान प्रबंधन के इन सूत्रों के साथ हम प्राचीन सूत्रों को जोड़ें। प्रबंधन के प्राचीन सूत्र हैं-बारह भावनाएं और उनके साथ जुड़ी हैं ये चार भावनाएं
•मैत्री .प्रमोद .करुणा
.उपेक्षा मैत्री सगठन छोटा हो या बड़ा, सबसे पहली आवश्यकता है मैत्री की। व्यवहार के सन्दर्भ में कहा जाता है-मैत्री का तात्पर्य है परस्पर प्रीति। देना, लेना, गुप्त बात पूछना, बताना, खाना, खिलाना-ये प्रीति के छह लक्षण हैं
ददाति प्रतिगृह्णाति, गुह्यमाख्याति पृच्छति।
भुक्ते भोजयते चैव, षड्विधं प्रीति लक्षणम् ।। जो इन छह लक्षणों से युक्त हो वह मित्र है। यह मैत्री का व्यावहारिक अर्थ है, किन्तु जिस मैत्री की चर्चा प्रबंधन के संदर्भ में की जा रही है, वह इस स्तर की नहीं है। उस मैत्री का अर्थ है-परेषां हितचिन्तनम्-दूसरों के हित की चिन्ता करना। परिवार का मुखिया और उसके सदस्य एक-दूसरे के हित की चिन्ता नहीं करते हैं तो परिवार कभी अच्छा नहीं हो सकता। वह
१६ : नया मानव : नया विश्व
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