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आत्म नियंत्रण सामूहिक मनोबल का पहला घटक है आत्मनियंत्रण। जो व्यक्ति अपने आप पर नियंत्रण करना नहीं जानता, अपनी वृत्तियों और संवेगों पर नियंत्रण करना नहीं जानता, वह संगठन में फिट नहीं बैठता। वह संगठन के लिए बाधक ही रहता है।
आत्मविश्वास दूसरा घटक है आत्मविश्वास। जहां लोग हमेशा संदेह का जीवन जीते हैं, यह सोचते रहते हैं-पता नहीं क्या होगा, कैसे होगा, वहां न संगठन चलता है, न विकास की संभावना ही होती है। आत्मविश्वास इतना होना चाहिए-अमुक कार्य होगा और होगा।
जैन आगम का प्रसंग है। द्रौपदी का अपहरण किसी अन्य द्वीप में रहने वाले राजा पद्मनाभ ने कर लिया। पता लग गया। युद्ध शुरू हुआ। इधर पद्मनाभ की सेना, उधर पांडवों की सेना। पांडवों की सेना के साथ थे-वासुदेव कृष्ण। वासुदेव कृष्ण ने पांडवों से कहा-जाओ, पद्मनाभ से लड़ो। पांडव गए किन्तु संदेह के साथ । वे स्वयं में आत्मविश्वास नहीं जगा पाए। 'अम्हे वा पद्मनाभे वा राया' हम जीतेंगे या पद्मनाभ जीतेगा-इस संशय और डांवाडोल स्थिति में रहे। आखिर पांडव हार गए। वासुदेव कृष्ण गएं। उन्होंने जाते ही कहा-अह्मे नो पद्मनाभे राया-मैं जीतूंगा, पद्मनाभ नहीं जीतेगा। इस निश्चय के साथ युद्ध लड़ा। फल यह हुआ-पद्मनाभ हार गया और वासुदेव कृष्ण जीत गए।
आत्मविश्वास सफलता का एक बहुत बड़ा सूत्र है । जिसमें आत्मविश्वास नहीं होता, जो संशय और संदेह की स्थिति में झूलता रहता है, वह कभी सफल नहीं होता। सामूहिक मनोबल के लिए आवश्यक है आत्मविश्वास।
अनुशासन तीसरा घटक है अनुशासन। सफल व्यक्ति की हर प्रवृत्ति अनुशासित होती है। मनचाही और ऊबड़-खाबड़ नहीं होती, उतार-चढ़ाव की नहीं होती। ऐसी स्थिति में सामूहिक मनोबल बढ़ता है। जहां सामूहिक मनोबल बढ़ता है, वहां
१४ : नया मानव : नया विश्व
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