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हजारों व्यक्तियों की पीड़ा और मानसिक कुंठा का कारण बन जाए। समाधान की दिशा इन सब परिस्थतियों को ध्यान में रखकर अणुव्रत ने जो सूत्र दिए हैं और प्रेक्षाध्यान ने जो प्रयोग दिए हैं, वे वर्तमान की समस्या को सुलझाने वाले हैं। इस वैज्ञानिक युग में जहां प्रतिदिन नए-नए आविष्कार हो रहे हैं, पदार्थों को बदला जा रहा है, वैसी स्थिति में एक चेतन मनुष्य, समझदार मनुष्य नहीं बदलता है, न बदलने की बात सोचता है तो इससे बड़ा आश्चर्य क्या होगा ? हम इस भूमिका में आश्चर्य की बात को गौण करें, यथार्थ की बात को ध्यान में रखकर कुछ ऐसे कदम उठाएं, जिससे मानवता का भविष्य उज्ज्वल बन सके और मानव मानवता के धरातल पर जी सके। सम्बन्ध सुधार के लिए न केवल व्यवस्था परिवर्तन जरूरी है और न केवल वृत्ति का परिष्कार। दोनों के परिवर्तन से ही समस्या का समुचित समाधान हो सकता है। यह सब चिंतन, संकल्प और प्रयोग के द्वारा संभव होगा, इसलिए अपेक्षित है-नई दिशा की ओर हमारे चरण गतिमान् बनें।
मानव और संबंध : ११
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