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________________ है-संस्कार परिवर्तन का अभ्यास दीर्घकाल तक निरंतर करो और श्रद्धा के साथ करो। इस प्रक्रिया से हम क्रूरता की वृत्ति का विलय और करुणा की वृत्ति का पुनर्स्थापन कर सकते हैं। संविभागिता का प्रयोग शुमेकर ने एक पुस्तक लिखी है-स्माल इज ब्युटीफुल । थोड़ा भी सुन्दर होता है। वह दिशादर्शक बन सकता है। स्कॉटलैण्ड में वार्डेड कंपनी ने कुछ प्रयोग किए और उनका अच्छा परिणाम आया। अगर समाज में संविभागिता का प्रयोग होता है, उद्योग में हिस्सेदारी का प्रयोग होता है तो शायद क्रूरता में कमी आएगी। यदि एक आदमी बहुत कमाता है और सामान्य से आयोजन में भी करोड़ों रुपये फूंकता है तो क्या यह हिंसा को बढ़ावा देना नहीं है। ? क्या यह किसी प्रतिक्रिया को जन्म देना नहीं है ? यदि संविभागिता का सूत्र पकड़ में आए तो मानवीय संबंधों में सुधार की बात सोची जा सकती है। कौन सुरक्षा देगा ? हम व्यवस्था परिवर्तन, आध्यात्मिक प्रयोग, अभ्यास आदि पद्धतियों को अपनाएं । हिंसा के परिणामों को समझें । बढ़ती हिंसा और भविष्य में उसके भयावह परिणामों को देखें तो शायद कोई सचाई हाथ में आ सकती है, परिवर्तन की संभावना बन सकती है। हिंसा बढ़ती जा रही है। आदमी कहीं भी सुरक्षित नहीं है। अपने घर में भी सुरक्षित नहीं है, बाहर भी सुरक्षित नहीं है। आज एक ही व्यक्ति की सुरक्षा के लिए करोड़ों रुपये का खर्च हो रहा है। कभी यह न हो जाए कि हर व्यक्ति की सुरक्षा के लिए कमाण्डों की जरूरत पड़ जाए और पूरा देश ही सुरक्षा की मांग करने लग जाए। फिर कौन सुरक्षित होगा, कौन संरक्षा देगा ? इस भयंकर चक्र की मात्र कल्पना की जा सकती है। गांव और नगर में जंगल का-सा माहौल न हो जाए, जंगली पशुओं की तरह एक दूसरे को मारने न लग जाएं। अगर इस बात पर ध्यान नहीं दिया, सन्बन्ध सुधार की बात गहराई से नहीं सोची गई तो हो सकता है कि ऐसा दुर्दिन भी आदमी को देखना पड़ जाए। ऐसा न हो, इससे पहले हम समझदारी से काम लें। अकेली ही इतना न भोंगे कि स्वयं का भोग १० : नया मानव : नया विश्व Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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