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हिंसा के हेतु
आज हिंसा और अपराध - ये दो बड़ी समस्याएं हैं। हिंसा के अनेक रूप हमारे सामने आते हैं। मनुष्य ज्यादा लेना चाहता है और दूसरे को कम देना चाहता है, यह हिंसा का एक बड़ा कारण है। इससे दूसरे में प्रतिक्रिया होती है और वह हिंसा या आतंक का रूप धारण कर लेती है । मनुष्य आजीविका में लगा है। अपनी आजीविका को वह उन्नत बनाना चाहता है और दूसरे की आजीविका का शोषण करना चाहता है । हिंसा का यह एक बड़ा कारण है । चोरी, डकैती, अपहरण, हत्या जैसे अपराध क्यों होते हैं ? हम मूल कारण पर ध्यान दें तो पता चलेगा कि एक मनुष्य की प्रवृत्ति दूसरे मनुष्य की हिंसा की प्रवृति को बढ़ा रही है, जागृत कर रही है । लोभ वैयक्तिक विशेषता है, स्वार्थ वैयक्तिक विशेषता है । लोभ और स्वार्थ क्रूरता पैदा करते हैं । एक की क्रूरता दूसरे में संक्रांत होती है, उसको भी क्रूर बना देती है । यदि लोभ न होता, अपनी आवश्यकता के अनुसार आदमी अपना काम चलाता तो इतनी प्रतिक्रिया नहीं होती । हिंसा भी इतनी नहीं बढती, आतंक भी नहीं बढ़ता और अपहरण की घटनाएं भी न होतीं । किन्तु मनुष्य ने अपनी दो वृत्तियों को ठीक से नहीं समझा, अहंकार और ममकार का सही-सही अंकन नहीं किया। इन दो वृत्तियों को इतना बढ़ाया कि शेष वृत्तियां गौण हो गईं ।
पदार्थ और शांति एक नहीं है
हम इसकी समीक्षा करें। यदि कोई शान्ति का जीवन जीना चाहता है और सुख से समाज में रहना चाहता है तो समीक्षा आवश्यक है । समाज इसीलिए बना कि उसमें मनुष्य शान्ति के साथ निश्चित होकर जी सके, आश्वस्त होकर जी सके । शान्ति नहीं है तो सुख कहां से होगा ? सुविधा के साधनों का अंबार लगाया जा सकता है, किन्तु सुख और शान्ति का नहीं । हम इस सचाई को कभी न भूलें कि पदार्थ और शान्ति एक नहीं है । पदार्थ और सुख एक नहीं है । इस सचाई को भी याद रखें - समस्या और दुःख एक नहीं है । समस्या और मानसिक समाधान एक नहीं है । समस्या भौतिक जगत् के स्तर पर होती है या मन के स्तर पर होती है । किन्तु चेतना उससे ऊपर है, जो समाधान में रहती है, वहां कोई समस्या नहीं है । हम समस्या को पकड़
मानव और संबंध : ७
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