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गेहूं और रोटी
संयम को पुष्ट या परिपक्व करने का अभ्यास कच्चे माल को पक्का बनाने का उपक्रम है गेहूं को रोटी में बदलने का उपक्रम है । इस दृष्टि से अणुव्रत को हम गेहूं कह सकते हैं । उसे रोटी बनाए बिना कैसे खाएंगे ?
बहन के घर भोज था । अनेक लोग आमंत्रित थे। सबको भोजन के लिए बैठाया गया। सजी हुई सुन्दर थालियां कपड़े से ढकी थीं। सबने कपड़े को हटा कर भोजन करना शुरू किया। भाई ने कपड़े को हटाया, देखा - थाली में मात्र गेहूं थे। भाई शर्मिन्दा होकर उठ गया । भाई ने बहिन से कहा- यह कैसा मजाक ? इतने लोगों में शर्मिन्दा होना पड़ा। बहिन ने कहा- 'भइया ! मूल तो गेहूं ही है। भोजन तो इसी से बनता है ? भाई चुपचाप चला गया । दो-चार महीने बीते । बहिन के बेटे की शादी का अवसर था । भाई अनेक संदूकों में सामान भर कर लाया । बहिन बहुत खुश हुई। लोगों की उपस्थिति में लाया, उन्हें खोला गया। उनमें रुई ही रुई भरी हुई थी । बहिन की आंखें शर्म से नीचे झुक गईं। उसने भाई से कहा - 'यह कैसा मजाक ? भाई बोला - बहिन ! आखिर सारे कपड़े तो रुई से ही बनते हैं न ? मैंने भी तो मूल ही दिया है ।'
किसे परोसें ?
जब तक रोटी न बने, गेहूं काम में नहीं आता । जब तक कपड़ा न बने, रुई भी काम की नहीं होती। गेहूं से रोटी बनाने की एक प्रक्रिया है 1 बिनाई, पिसाई, गुंथाई, फिर रोटी । अणुव्रत मूल आधार है संयम का । उसे परिपक्व या उपयोगी बनाने की जो प्रक्रिया है, साधना है, वह है प्रेक्षाध्यान । रोटी बन जाने के बाद फिर परोसने की बात आती है । प्रश्न है- किसको परोसें ? कुछ लोगों को ही क्यों परोसें ? खुला निमंत्रण क्यों न दें ? सबको निमंत्रित कर लिया, इतना व्यापक रूप दे दिया कि कोई भी आए । विद्यालय ही वह स्थान है, जहां हजारों की संख्या में छात्र पढ़ते हैं। छात्रों के जीवन विकास की दृष्टि से जीवन विज्ञान को प्रस्तुत किया 1
२२० : नया मानव : नया विश्व
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