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हो जाती है-माता-पिता, भाई-बहन आदि। जो संबंध से अतीत है, वह संन्यासी या मुमुक्षु कहलाता है। उत्तराध्ययन सूत्र में मुनि का पहला लक्षण बताया गया है योग से विप्रमुक्त होना। किन्तु सामाजिक धरातल पर बच्चा जन्म के साथ ही सम्बन्धों के घेरे में आ जाता है। सम्बन्ध द्वैत पर आधारित होता है। संदर्भ दर्शन का भारतीय दर्शन में तीन विचारधाराओं का विकास हुआ
.अद्वैतवाद
द्वैतवाद •द्वैताद्वैतवाद।
आद्य शंकराचार्य तथा उनके गुरु गौड़पाल ने अद्वैतवाद को जन्म दिया। इस विचारधारा के अनुसार एक मात्र ब्रह्म ही सत्य है, जगत् मिथ्या है। द्वैतवादी विचारधारा के समर्थक हैं बौद्ध, सांख्य और नैयायिक। इनके अनुसार चेतन और अचेतन-दोनों का अस्तित्व है। यदि केवल अद्वैत को ही स्वीकार करें तो हमारा व्यवहार कैसे चलेगा ? व्यक्ति और समाज का सम्बन्ध कैसा होगा ? अद्वैत में न व्यवहार है, न भाषा है, न विचार है, न चिन्तन है, कुछ भी नहीं। ऐसी स्थिति में अद्वैतवादियों को माया की कल्पना करनी पड़ी। उन्होंने कहा-माया के द्वारा व्यवहार चल रहा है किन्तु वह वास्तविक नहीं है। इस प्रकार अचेतन की स्वीकृति ने माया को सिंहासन पर प्रतिष्ठित कर दिया। यह आदर्शवादी दार्शनिकों का चिन्तन है।
__ यथार्थवादी दार्शनिकों के अनुसार माया की कल्पना करना आवश्यक है। चेतन और अचेतन-ये दोनों तत्त्व यथार्थ हैं। यहां भी एक समस्या है-यदि हम द्वैत को मानें तो भेदानुभूति प्रबल हो जाएगी। इसलिए आवश्यक है कि हम द्वैत के पीछे अद्वैत को तथा अद्वैत के पीछे द्वैत को स्वीकार करें। अद्वैत और द्वैत का समन्वय अनेकान्त दर्शन न तो द्वैतवादी है और न अद्वैतवादी । उसमें अद्वैत और द्वैत--दोनों का समन्वय है। हम कंवल अद्वैत के आधार पर संबंधों की
मानव और संबंध : ५
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