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________________ को बांटा जाता तो शायद हजारों-हजारों परिवार तृप्त हो जाते। संग्रह और शोषण के विरोध में चलने वाली विचारधारा का नेतृत्व करने वाला स्वयं इतना परिग्रही ! इस का कारण क्या है ? जीवन विज्ञान का सूत्र हमने इस सचाई को क्यों नहीं पकड़ा, यह बड़ा आश्चर्य है और आश्चर्य नहीं भी है। जब तक अध्यात्म की एषणा नहीं करेंगे, उस पर गहरा चिन्तन नहीं करेंगे, तब तक इसको पकड़ा भी नहीं जा सकता और छोड़ा भी नहीं जा सकता। पर्यावरण के संदर्भ में कहा गया-पदार्थ सीमित है, उपभोक्ता ज्यादा है, इसलिए बांट-बांट कर खाओ। 'सबके लिए हो' यह अवधारणा राजनीति में प्राचीनकाल से चलती आ रही है। चाणक्य ने कहा-'अकेले मत खाओ, खाओ और खिलाओ।' इसे आज इस रूप में लिया जा रहा हैरिश्वत खाओ और खिलाओ। स्वयं रिश्वत लो और दूसरों को भी रिश्वत खाने दो। इसलिए ऊपर का अधिकारी, बीच का अधिकारी और नीचे का अधिकारी-तीनों में मेल होता है। अर्थशास्त्र, समाज शास्त्र, पर्यावरण शास्त्र से जो अवधारणा अछूती रह गयी, वह है अध्यात्मशास्त्र की। उसे जब तक जोड़ा नहीं जायेगा, तब तक समाज स्वस्थ नहीं बनेगा। जीवन विज्ञान का वक्तव्य है-समाजशास्त्र, अर्थशास्त्र, सृष्टि विज्ञानशास्त्र-सब चलेंगे, किन्तु इन सबके साथ कामना के संयम की बात जोड़ दें, स्वस्थ समाज का आधार निर्मित हो जाएगा। समाज की प्राणशक्ति संयम समाज की प्राणशक्ति है। इस प्राणशक्ति को प्रतिष्ठित कैसे करें ? एक उपाय है शिक्षा। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी के मस्तिष्क में प्रारंभ से ही अहिंसा की चेतना जागृत की जाये। यह काम-संयम की चेतना अहिंसा की चेतना है। जितना काम का असंयम, उतनी हिंसा। जितना काम का असंयम, उतना आर्थिक अपराध । जड़ की बात है- काम संयम या अहिंसा की चेतना को जागृत करें और उसका सशक्त माध्यम है शिक्षा। प्रारंभ से ही विद्यार्थी के मस्तिष्क में यह धारणा बिठाएं- जो इच्छा पैदा होती है, उसे भोगो मत, स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प : २०१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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