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होगा। यदि अर्थ और काम दोनों का समवेत अध्ययन किया जाता तो शायद हम समाधान के बहुत निकट पहुंच जाते।
धर्म के लोगों ने काम का अध्ययन बहुत विस्तार से किया । समाजवाद और साम्यवाद के दार्शनिकों ने अर्थ का अध्ययन बहुत विस्तार से किया दोनों के अध्ययन अलग-अलग रहे। यदि मिला दें तो समस्या का बहुत कुछ हल हो जाए। काम और अर्थ - दोनों का संयुक्त अध्ययन भी होना चाहिए । काम शास्त्र की बात सेक्स के सन्दर्भ में नहीं कह रहा हूं । कामशास्त्र यानी इच्छा का शास्त्र, कामना का शास्त्र । कामशास्त्र, अर्थशास्त्र और इनके साथ जुड़े उपभोगशास्त्र | इन तीनों का एक समवाय बनता है तो समाज को स्वस्थ बनाने वाली प्रक्रिया उपलब्ध हो जाती है ।
स्वस्थ समाज के लक्षण
एक व्यक्ति चोरी करता है । भीतर में अगर कामना नहीं है तो कठिनाई झेल लेगा, किन्तु चोरी नहीं करेगा। चोरी के पीछे कोई गरीबी कारण नहीं है । ऐसे चोर हैं जो बहुत संपन्न हैं, किन्तु चोरी आदतन करते हैं, संस्कारवश करते हैं, दमित वासना की पूर्ति हेतु करते हैं । जितने अपराध होते हैं, वे किसी प्रयोजन के साथ ज्यादा नहीं होते। यह एक बहाना है कि इस स्थिति में बेचारा क्या करता ? उसके पीछे दमित वासनाए हैं संस्कार हैं, और भीतर जाएं तो कामना का चक्र चल रहा है। कामना का संयम नहीं हैं, इसलिए अपराध में जा रहा हैं ।
स्वस्थ समाज के तीन लक्षण हैं
जिस समाज में काम पर नियंत्रण किया जाता है, वह स्वस्थ समाज है । जिस समाज में अनावश्यक हिंसा नहीं होती है, वह स्वस्थ समाज है । जिस समाज में आर्थिक अपराध नहीं होता है, वह स्वस्थ समाज है । जड़ की बात
स्वस्थ समाज के लिए पहला लक्षण ही पर्याप्त है, किन्तु अभिव्यक्ति की सुविधा के लिए दो और जोड़ दें। मूल है काम । भगवान् महावीर ने कहा - 'कामे कमाहि कमियं खु दुक्खं- सारे दुःख कामना के साथ होते हैं ।
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स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प : १६७
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