________________
कामना का अतिक्रमण करो, दुःख अपने आप मिट जायेगा । दुःख को मिटाने का प्रयत्न मत करो। तुम दुःख की जड़ तक जाओ। दुःख की जड़ है काम काम तक जाओ, वहां समाधान करो, तुम्हें अनुभव होगा-दुनिया में दुःख नाम की कोई चीज नहीं है। ___ अध्यात्म के आचार्यों ने सचमुच जड़ को पकड़ा था। समाजवाद और साम्यवाद के कर्णधारों ने जड़ को नहीं पकड़ा, तने को पकड़ लिया। स्वस्थ समाज की जड़ है कामना का संयम और उसका तना है अर्थ का संयम। ये दो बातें आती हैं तो स्वस्थ समाज के लिए हमारी पृष्ठभूमि प्रशस्त बन जाती है। कामना का संयम है तो उपभोग की सीमा अपने आप हो जाती
मनोवैज्ञानिक दृष्टि मनोवैज्ञानिक दृष्टि से विचार करें। पहले व्यक्ति के मन में कामना पैदा होती है। एक स्त्री के मन में कामना पैदा हुई-मुझे हार पहनना है। पति से हार की मांग की। हार प्राप्त हो गया। कामना की पूर्ति हो गयी, संतुष्टि हो गयी। किन्तु दूसरे दिन पड़ोसिन के गले में उससे भी बढ़िया हार देखा। उसकी कामना को पुनः उत्तेजना मिली। पति से बोली-जो कल लाए थे, वह तो साधारण हार है, मुझे तो उससे बढ़िया हार चाहिए।
यह काम-प्रेरित समस्या है। आज के ये सारे फैशन इसीलिए चल रहे हैं कि एक दूसरे को देखकर कामना का उद्दीपन हो रहा है। वर्तमान में कामना के उद्दीपन के जितने भी उपक्रम चल रहे हैं, उन्हें असीम कहा जा सकता है और उसी आधार पर सारा अर्थ चक्र चल रहा है। एक भाई ने बताया-हम लड़कियों के लिए बढ़िया से बढ़िया कपड़ा लाते हैं, किन्तु एक महीने बाद वह सब उनके लिए बेकार हो जाता है। वे कहती हैं- अब यह किसी काम का नहीं, फैशन बदल गया। फिर नया लाते हैं, कुछ ही दिनों के बाद वह भी बेकार हो जाता है। डिजाइनर नए-नए, आकर्षक परिधान निकालते हैं, जिससे ज्यादा से ज्यादा बिक्री हो, किन्तु बेचारा ग्राहक जो उपभोक्ता है, उसके सिरदर्द हो जाता है।
१६८ : नया मानव : नया विश्व
Jain Education International
For Private & Personal Use Only
www.jainelibrary.org