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स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प
हम सब देखते हैं, किन्तु जिसे देखना चाहिए, उसे कम देखते हैं, वहां तक कम पहुंच पाते हैं । व्यक्ति को देखते हैं, समाज को देखते हैं । एक दृष्टिकोण है व्यक्ति को देखने का, समाज को देखने का । देखते हैं तो कुछ विकार सामने आते हैं, कुछ बीमारियां सामने आती हैं | प्रतीत होता हैं- व्यक्ति रुग्ण है और समाज भी रुग्ण है। आदमी चाहता है - वह रुग्ण न रहे । प्रत्येक युग के जो चिंतक व्यक्ति हुए हैं, उन्होंने सामाजिक स्वास्थ्य के लिए योजना बनाई है, दर्शन दिया है, प्रयत्न किया हैं i
बीमारी कहां है ?
कुछ दार्शनिकों और अर्थशास्त्रियों ने समाज की बीमारी का कारण अर्थ की समस्या को बताया । - अर्थ के आधार पर समाज बनता हैं और बिगड़ता है । यदि अर्थ की व्यवस्था ठीक कर दी जाये तो समाज स्वस्थ बन जायेगा । इसी आधार पर एक दर्शन चल पड़ा साम्यवाद का, सामजवाद का । काफी प्रयत्न किये गये अर्थ की व्यवस्था को संतुलित करने के लिए, समाज को स्वस्थ बनाने के लिए, किन्तु व्यवस्था संतुलित नहीं हुई । असंतुलन बढ़ता रहा । आर्थिक समस्या नहीं सुलझी, आर्थिक अपराध बढ़े हैं, स्वास्थ्य बिगड़ा है । बीमारी आखिर कहां है ? बीमारी क्या है ? इन दो बिन्दुओं पर विचार करना होगा ।
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स्वस्थ समाज संरचना का संकल्प : १६५
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