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नया चिंतन हमारे सामने प्रस्तुत होगा। ऐसा लगता है कि यह बात कुछ समझ में आ रही है। कुछ लोग सोच भी रहे हैं। किन्तु स्वार्थमुक्त होकर केवल शिक्षातंत्रीय दृष्टिकोण से कब सोचा जायेगा, इसकी प्रतीक्षा है। अगर समाज को कुछ बदलना है तो इसके अतिरिक्त और कोई विकल्प भी नहीं है। ऐसा नहीं माना जाना चाहिए कि जीवनविज्ञान पूज्य गुरुदेव तुलसी की सन्निधि में विकसित हुआ है। यह तो वास्तविकता है। इस वास्तविकता को उल्टा नहीं जा सकता। जो यथार्थ है, उस यथार्थ की स्वीकृति ही हमारी समस्या का सबसे बड़ा समाधान होगा।
१६४ : नया मानव : नया विश्व
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