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________________ रहोगे और वह उत्तेजित रहेगा तो तुम जीत जाओगे, वह हार जायेगा । / पूज्य कालूगणी का वह उदाहरण बहुत सार्थक है - दो व्यक्तियों ने एक रस्से को खींचना शुरू किया। अगर दोनों तानते हैं तो रस्सी टूट जायेगी और दोनों गिर जाएंगे। एक तांनता है और दूसरा ढील दे देता है तो तानने वाला गिर जायेगा। जीवन विज्ञान यही सिखाता है (कोई भी समस्या आए, चाहे वह विद्यार्थी जीवन में आए या पारिवारिक जीवन में, समस्या का समाधान तनावमुक्त रह कर करें । भीतर : बाहर सूफी सन्तों के बारे में एक बहुत सुन्दर बात कही जाती है। किसी ने पूछापुराने सूफी सन्तों में और आज के सूफी सन्तों में क्या अन्तर है ? इस प्रश्न का बहुत मार्मिक उत्तर दिया गया - अन्तर केवल इतना है कि पुराने सूफी सन्त भीतर में स्थिर रहते थे और बाहर में चंचल रहते थे। आज के सूफी सन्त भीतर में तो चंचल हैं और बाहर में बहुत स्थिर हैं । भीतर में चंचल रहना और बाहर में स्थिर रहना दिखावा है, समस्या के समाधान का सूत्र नहीं है । मानसिकता बदले जीवन विज्ञान का प्रशिक्षण व्यक्ति को भीतर में स्थिर करेगा, वह बाहर से चंचल रह कर समस्या का समाधान खोजेगा। आज इसके सर्वथा विपरीत चल रहा है। आज का सूत्र यह है- 'शठे शाठ्यं समाचरेत्' – कोई तुम्हारे साथ शठता का व्यवहार करे तो तुम्हें भी उसके साथ शठता का व्यवहार करना चाहिए । अगर कोई तुम पर कंकड़ फेंके तो तुम उस पर पत्थर फेंको। जैसे को तैसा उत्तर दो। ये सूक्तियां और लोक कहावतें बता रही हैं कि हमारी मानसिकता क्या है ? इस मानसिकता को बदलना है । हाथ पर हाथ धरकर मत बैठो, समस्या का समाधान खोजो, किन्तु शठ के साथ शठ बन कर नहीं । अगर शठ बन कर समाधान खोजने की कोशिश करोगे, तो वह शठता पहले तुम्हें खायेगी, समाधान होगा नहीं, समस्या और उलझ जायेगी । यही जीवन का रहस्य है कि हर स्थिति में तुम शिक्षा का नया आयाम : १८१ Jain Education International For Private & Personal Use Only www.jainelibrary.org
SR No.003059
Book TitleNaya Manav Naya Vishwa
Original Sutra AuthorN/A
AuthorMahapragna Acharya
PublisherAdarsh Sahitya Sangh
Publication Year1996
Total Pages244
LanguageSanskrit
ClassificationBook_Devnagari, Discourse, & Spiritual
File Size10 MB
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