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समस्या और तनाव एक विद्यार्थी तनाव में है तो वह उद्दण्ड भी बनेगा, आक्रामक भी बनेगा और भविष्य में वह आक्रमकता का संस्कार अर्जित करता रहेगा, उसके मस्तिष्क में आक्रामकता की वृत्तिं पैठ करती रहेगी। आवश्यक है कि विद्यार्थी को सदा तनावमुक्त रखा जाए। परीक्षा का समय हो या अध्यापक का व्यवहार, घरेलू समस्या हो या आर्थिक समस्या, उसको तनावमुक्त रखा जा सके, यह बहुत आवश्यक है। क्या उपरोक्त परिस्थितियों में वह तनावमुक्त रह सकेगा ? अगर हम बौद्धिक स्तर पर सोचें तो उत्तर होगा-नहीं रह सकेगा। किन्तु भाषामुक्त विधि के आधार पर हम चिन्तन करें तो हम कह सकते हैं कि समस्या के होते हुए भी वह तनावमुक्त रह सकेगा, रहेगा। यही जीवन की कला है-हजार समस्या है, पर फिर भी तनावमुक्त रहें। यह न माने कि समस्या तनाव पैदा करती है। कोई समस्या तनाव पैदा नहीं करती। हमारी मस्तिष्क की दुर्बलता तनाव पैदा करती है या मस्तिष्क का एक भाग, जो हर समय सक्रिय रहता है, तनाव पैदा करता है। अगर हम मस्तिष्क के उस भाग को जागृत कर लें, जो सारे तनावों को रिलीज करता है, कभी भी तनाव को संचित नहीं होने देता, तो बड़ी-से-बड़ी समस्या के आने पर भी तनाव नहीं होगा। ऐसा भी नहीं होगा कि वह समस्या को झेलता रहे। वह तनावमुक्त होकर समस्या का समाधान ढूंढ़ेगा। क्या तनाव में किसी समस्या का समाधान खोजा जा सकता है ? तनाव में समस्या को सुलझाने का अर्थ है-एक समस्या को समाहित करना, दूसरी समस्या को पैदा कर लेना। समाधान का यह तरीका नहीं है-समस्या को सुलझाने का तरीका है-स्वयं स्थिर रहे, स्वयं समस्या न बने।
विजय का सूत्र प्रचीन काल में शास्त्रार्थ बहुत होते थे, वादविवाद बहुत चलते थे और उनके बड़े-बड़े अखाड़े चलते थे। आगम साहित्य में बतलाया गया-जब वाद विवाद चल रहा हो, प्रतिपक्ष उत्तेजनापूर्ण व्यवहार कर रहा हो, ऐसी स्थिति में अगर तुम्हें विजयी होना है तो तुम शान्त रहो। चर्चा करने वाला उत्तेजित होता है और यदि तुम उत्तेजित हो गये तो तुम्हारी पराजय निश्चित है। तुम शान्त १६० : नया मानव : नया विश्व
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