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इतनी हिंसा भी नहीं थी। आज कमाई का सबसे बढ़िया तरीका है अपहरण
और फिर फिरौती की मांग। आज तो यह लगभग उद्योग का रूप ले चुका है। न कोई दुकान या शोरूम, न फैक्टरी और उद्योग। आजकल समाचार पत्रों में ऐसी खबरें प्रायः मुखपृष्ठ पर रहती हैं- जो बच्चे को प्रतिदिन गाड़ी से स्कूल ले जाता था, उस ड्राइवर ने ही बच्चे का अपहरण कर लिया और दस लाख फिरौती की मांग कर दी। आज आर्थिक अपराध इतने बढ़ गए हैं कि पहले शायद इनकी कल्पना भी नहीं की गई होगी। शिक्षा. ने दक्षता बढ़ा दी, बौद्धिकता बहुत बढ़ा दी, अब उसका उपयोग आर्थिक अपराध, सामाजिक अपराध के क्षेत्र में हो रहा है।
यह स्वाभाविक बात है-जब समस्या गहराती है, तब समाधान खोजने की चाह बढ़ती है। आज आदमी सोच रहा है- इसका कोई समाधान होना चाहिए और वे लोग विशेषकर सोच रहे हैं, जो अपहरण के शिकार हए हैं, जिनसे दो करोड़, पांच करोड़, दस करोड़ की मांग हुई है और जिन्हें ले-देकर समझौता भी करना पड़ा है। ऐसे समझौते सरकार को भी करने पड़े हैं। जिनके घरों में दिन-दिहाड़े डकैती हो जाती है, वे इस बारे में बहुत सोचते हैं। जो आतंकवाद के साये में जी रहे हैं, भारी रिश्वत और दहेज की समस्या से प्रताड़ित हो रहे हैं, वे अवश्य सोचते हैं कि स्थिति बदलनी चाहिए। इस सोच ने जीवन विज्ञान या अहिंसा प्रशिक्षण के लिए अधिक अनुकूल वातावरण बनाया है। इस अवसर पर भी हमारे शिक्षाशास्त्रियों ने कुछ नहीं सोचा, शिक्षा में कोई परिवर्तन की बात नहीं सोची तो शायद इससे भयंकर भूल
और कुछ नहीं होगी। आज भले ही कोई न करे, लेकिन भावी पीढ़ी उनकी मूर्खता का उल्लेख अवश्य करेगी। इतिहास इस भयंकर भूल का अहसास करेगा, उल्लेख करेगा और मानेगा-जिनके हाथ में बदलने का सूत्र था, वे कुंभकर्णी नींद में सोते रहे और अपनी रोटी पकाते रहे, उन्होंने देश के लिए कुछ नहीं किया। दायित्व धर्म गुरु का यही प्रश्न आज धर्मगुरुओं के सामने है। दो ही तंत्र हैं, जिनमें बदलने की क्षमता है। राजनीतिज्ञ बदल नहीं सकते। उन्हें तो स्वयं बदलना है। वे किसी
१८८ : नया मानव : नया विश्व
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