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चरित्र की शाखा आर्थिक पक्ष के लिए अर्थशास्त्र की पूरी शाखा है। शरीर विज्ञान और चिकित्सा विज्ञान की पूरी शाखा भौतिकपक्ष के लिए है, शरीर के लिए है, स्वास्थ्य के लिए है। समाजविज्ञान सामाजिक पक्ष के लिए है। जीवन के हर पक्ष के लिए एक शाखा है, जहां विशेष अध्ययन होता है, व्यक्ति विशेषज्ञ बनता है। किन्तु चरित्रपक्ष के लिए कोई स्वतंत्र शाखा नहीं है। व्यवहार मनोविज्ञान में कुछ बातें बताई जाती हैं, किन्तु चरित्र विकास के लिए विशेषज्ञता की बात नहीं आयी और अपेक्षित भी नहीं लगी। आश्चर्य हैविश्वविद्यालयों में विभिन्न विषयों की सैकड़ों-सैकड़ों शाखाएं हैं, कहीं दो सौ डिपार्टमेंट हैं, कहीं चार सौ हैं किन्तु एक भी फैकल्टी चरित्र विज्ञान या अहिंसा प्रशिक्षण के लिए नहीं है। इसका अर्थ है-विद्या की ये शाखाएं जीविका के साथ जुड़ी हुई मान ली गई हैं और चरित्र के विषय को जीविका से बाहर रख दिया गया इसलिए अपेक्षित नहीं समझा गया। प्रश्न आचरण की शाला का कहा जाता है-नारद एक बार रावण के यहां चले गए। रावण बहुत विद्वान् था। वैदिक साहित्य में उसे शिवभक्त और प्रकाण्ड विद्वान् माना गया है। वह विद्या का अनुरागी था, इस तथ्य का जैन साहित्य भी समर्थन करता है। हजार विद्याएं उसने सिद्ध कर ली थीं। वह शक्तिशाली विद्याधर था। रावण ने नारद को अपने विद्या के कक्ष दिखाते हुए कहा-यह मेरी अध्ययनशाला है, यह मेरी प्रयोगशाला है, यह विज्ञानशाला है। नारद को विद्या की सारी शालाएं दिखा दी। नारद ने एक प्रश्न किया-‘महाशय ! बहुत सारी शालाएं दिखा दी, कहीं कोई आचरण की शाला भी है ? रावण ने कहा-'वह तो नहीं है।' नारद बोले-'आचरण की शाला नहीं है तो ये सारी शालाएं आपका ही विनाश करेंगी।'
अनिवार्य बने चरित्र की शिक्षा यह बहुत गंभीर बात है। आचरण की शाला नहीं होती है, विद्या की दूसरी सारी शालाएं बन जाती हैं, तो वे स्वयं मनुष्य के संहार के लिए आगे आ
शिक्षा का नया आयाम : १८५
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