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सीधा-सच्चा पुलिस अधिकारी आता है तो वह भी बिगड़ जाता है। रिश्वतखोरी की बीमारी आते ही लग जाती है। ये पहले अधिकारी हैं, जो हर प्रकार के नशे से दूर हैं, किसी के साथ अन्याय नहीं करते, अन्याय होने नहीं देते। उस सब इंस्पेक्टर ने बताया-महाराज ! हम जितने लोग उस शिविर में रहे, आज भी अपने कर्तव्य का पालन कुशलता से कर रहे हैं। उससे हमारी एक अलग ही छवि बन गयी है। यदि राजस्थान सरकार उस क्रम को जारी रखती तो पुलिस विभाग में एक आश्चर्यजनक परिवर्तन आ जाता, उसकी छवि सुधर जाती। मेरी आपसे प्रार्थना है कि आप राजस्थान सरकार को प्रेरित करें कि वह उस क्रम को फिर से शुरू करे।' संतुलन की प्रक्रिया शिक्षा के संदर्भ में या कार्यक्षेत्रीय कौशल के संदर्भ में एक बड़ा तत्त्व है संवेग का संतुलन। प्रश्न होगा कि यह संतुलन कैसे हो ? यही शिक्षा का महत्त्वपूर्ण बिन्दु है। इस बिन्दु का स्पर्श न करें तो शिक्षा शाब्दिक और बौद्धिक विकास के लिए बन जायेगी, किन्तु वह चरित्र का विकास और व्यक्तित्व का निर्माण करने वाली नहीं बनेगी। इस बिन्दु पर ही जीवन विज्ञान की उपयोगिता हमारे सामने आती है। कुछ लोग कहते हैं-हम एक महापुरुष की जीवनी पढ़ा देंगे तो विद्यार्थी अच्छा बन जायेगा। हम इसको अस्वीकार नहीं करते। गांधी के साहस की एक घटना पढ़ेंगे तो साहस का विचार स्फुरित होगा। कर्तव्यपरायणता, ईमानदारी की कोई घटना पढ़ेंगे तो दिमाग में एक बिजली कौंध जायेगी, एक तरंग पैदा हो जायेगी। किन्तु यह मानव मस्तिष्क भी अजीब है। क्या यह कह सकते हैं-एक बार जो तरंग आयी, वह मस्तिष्क में छायी रह जायेगी ? समुद्र में कितनी ही तरंगें उठती हैं, किन्तु वापस गिर जाती हैं। तरंग टिकती कहां है ? उसे टिकाने की कोई प्रक्रिया खोजें। ___आज शिक्षा के क्षेत्र में मूल्यों की चर्चा है। हम पुस्तकों के माध्यम से कर्तव्यबोध, दायित्वबोध, राष्ट्रीय एकता आदि का पाठ कितना ही पढ़ा दें, तब तक इनकी कोई सार्थकता नहीं होगी, जब तक इनकी अनुप्रेक्षा नहीं कराई जायेगी। जब तक स्वतःसूचन या सजेस्टीलौजी के प्रयोग नहीं कराए
१८२ : नया मानव : नया विश्व
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