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में सफल हो जाता है। ___ आचार्य भिक्षु दूसरे संप्रदाय के साधु के साथ चर्चा कर रहे थे। चर्चा के प्रसंग में आवेग संतुलित नहीं रहा। दूसरे संप्रदाय का साधु आवेश में आकर बोला-'साले का सिर काट दूं।' अब दूसरी ओर भी आवेश आना चाहिए था पर आचार्य भिक्षु सधे हुए व्यक्ति थे। उन्हें आवेश नहीं आया, प्रत्युत वे मुस्कुराते हुए बोले-'आपने मुझे साला कहा, कोई बात नहीं। क्योंकि दुनिया की जितनी स्त्रियां हैं, वे सब मेरी बहिन हैं, किन्तु क्या आपने संन्यास लेते समय ब्रह्मचर्य महाव्रत में कोई छूट रखी थी ? आपने अगर शादी की है तो ठीक है, आपकी पत्नी मेरी बहिन और मैं आपका साला। किन्तु यदि नहीं की है तो आपको असत्य भाषण का दोष लगेगा।
यदि सहनशीलता बढ़ जाये तो हजारों सफलताएं हमारे साथ हैं। - अहं, क्रोध, भय असहिष्णुता, लोभ, वासना-ये जो संवेग हैं, इन्हें संतुलित करना और इन पर नियंत्रण पाना सफलता का हेतु बनता है। कार्य क्षेत्रीय कौशल के लिए ये सबसे आवश्यक तत्त्व हैं। कर्मजा शक्ति का विकास कार्यक्षेत्रीय कौशल का छठा सूत्र है-कर्मजा शक्ति का विकास । इसके अभाव में कुशलता की बात ही बेमानी है। शिक्षा के द्वारा विद्यार्थी में कर्मजा शक्ति का विकास नहीं होता है तो उस शिक्षा को व्यर्थ मानना चाहिए। यदि पढ़ालिखा आदमी अकर्मण्य, निकम्मा, निठल्ला और आलसी बनता है, तो इससे बड़ी लज्जा की बात और कुछ नहीं हो सकती। उसमें कुछ करने की चेतना जागृत होनी चाहिए, उसकी कर्मजा शक्ति का विकास होना चाहिए। सृजनात्मक शक्ति का विकास कार्य क्षेत्रीय कौशल का सातवां सूत्र है-सृजनात्मक शक्ति का विकास। यदि सृजनात्मक शक्ति नहीं है, न नई कल्पना, न नई रचना, न नया निर्माण, न नया उन्मेष, न नया स्पंदन, कुछ भी नहीं है तो व्यक्ति भोथरा बन जाएगा, वह कुछ भी नहीं कर पाएगा।
आज की एक ज्वलंत समस्या है--शिक्षा लेने के बाद हर विद्यार्थी कुर्सी
कार्यक्षेत्रीय कौशल : १७६
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