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करते हैं कि सुनने वाले दंग रह जाते हैं। आज भी एक युवक में जितनी स्मृति प्रखर है। स्मृति की प्रखरता कार्यक्षेत्रीय कौशल के लिए आवश्यक
संवेग संतुलन पांचवां तत्त्व है संवेग संतुलन। यह कार्यक्षेत्रीय कौशल का सबसे प्रभावी सूत्र है। जो व्यक्ति अपने संवेगों को संतुलित रखना नहीं जानता, वह कार्य में सफल नहीं हो सकता। सबसे कठिन है संवेग का संतुलन । कार्य में अस्तव्यस्तता, लड़ाई-झगड़े, पारिवारिक और संस्थागत कलह-ये सब असंतुलित संवेगों के परिणाम हैं। दो व्यक्ति हैं, दोनों का लक्ष्य एक है, दोनों कार्य की सफलता चाहते हैं, पर दोनों का अहं ऐसा टकराता है कि असफलता हाथ लगती है। अहं का टकराव कार्य में सबसे ज्यादा विघ्न
और बाधा उपस्थित करने वाला तत्त्व है। मनुष्य जानता है कि इससे काम बिगड़ जायेगा, किन्तु फिर भी वह इस अहं वृत्ति को छोड़ नहीं पाता। यदि विद्या के क्षेत्र में, शिक्षा के क्षेत्र में कुछ करना है तो सबसे पहले अध्यापक, विद्यार्थी और अधिकारी-इन सबको संवेग संतुलन का अभ्यास करना चाहिए। असहिष्णुता की समस्या असहिष्णुता आज की सबसे बड़ी समस्या है। एक व्यक्ति ने जान्सन के शिष्य का अपमान कर दिया। वह अपने गुरु जान्सन के पास गया। उसने शिकायत की और कहा- 'मैं इस अपमान का बदला लूंगा।' जान्सन ने कहा-वत्स, आज तुम इतना आवेश कर रहे हो, एक वर्ष बाद तुम्हें मालूम होगा कि इसका मूल्य बहुत कम है। तुम कुछ मत करो।' उसने गुरु की बात मान ली। वह चुप रहा, आवेश शान्त हो गया। एक वर्ष बाद उसने अपना अनुभव लिखा-मैंने गुरु की बात मान ली और कोई प्रतिक्रिया व्यक्त नहीं की। इसका परिणाम यह हुआ कि जब-जब भी जीवन में वैसे क्षण आते हैं, मैं बहुत संतुलित रहता हूं और सफलता मेरे पीछे दौड़ती है।
बड़ा कठिन है सहना किन्तु जो सहन कर लेता है, वह अपने कार्यक्षेत्र
१७८ : नया मानव : नया विश्व
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