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नहीं है। कुछ को इस सचाई का भान बहुत पहले हो जाता है तो बहुतों को बुढ़ापे में भी नहीं होता। एक व्यक्ति ने बहुत कमाया। अवस्था के साथ इन्द्रियां कुछ कमजोर हुईं, शक्ति कुछ क्षीण हुई। चाबियां बेटे और बहुओं के हाथ में चली गईं। उसे यह प्रतीक्षा करनी पड़ती कि कुछ मिल जाए। ऐसे लोगों के बारे में भी सुना है, जिन्होंने अरबों की संपत्ति छोड़ी, किन्तु मरते समय भी उनके पास में कोई नहीं था। आध्यात्मिक व्यक्तित्व का निर्माण होगा तो इस झूठ से, ममत्व की भ्रान्ति से परे होगा। सत्य की खोज हम वैज्ञानिक व्यक्तित्व की कसौटी पर विचार करें। वैज्ञानिक व्यक्तित्व की पहली कसौटी है सत्य की खोज । वैज्ञानिक व्यक्तित्व वह है, जिसमें मिथ्या आग्रह नहीं है, अनेकान्त का दृष्टिकोण है। वैज्ञानिक दृष्टिकोण में कोई पकड़ नहीं होती, आग्रह नहीं होता। मैंने मान लिया या मैं मानता हूं, ऐसा कुछ नहीं होता। जानने का प्रयत्न होता है और निरन्तर नये-नये तथ्यों को उद्घाटित करने का प्रयत्न होता है। भगवान् महावीर ने कहा-'सत्य अनन्त हैं। पर्याप्त अनन्त हैं। नियम अनन्त हैं। ‘सत्य का अर्थ है सामयिक पर्याय । सत्य का अर्थ है अस्तित्व और सत्य का अर्थ है नियम । पर्याय अनन्त हैं, नियम अनन्त हैं। हम कुछेक नियमों को जानकर सब कुछ जान लेने का दावा नहीं कर सकते। लोकभाषा में कहें तो सोंठ की एक गांठ लेकर पंसारी नहीं बन सकते। बहुत मार्मिक उत्तर न्यूटन से कहा गया-'आपने बहुत से नियम खोजे हैं।' उन्होंने बहुत मार्मिक उत्तर दिया- 'तुम लोग कुछ भी कहो। लेकिन मेरी स्थिति तो समुद्र के तट पर खड़े उस बालक जैसी है, जो समुद्र के किनारे पड़ी सीपियों को बटोर रहा है। किन्तु विशाल समुद्र के गर्भ में छिपे रत्न उससे बहुत दूर हैं।
जिसमें नये सत्यों को ग्रहण करने का इतना विनम्र दृष्टिकोण होता है, वह वैज्ञानिक दृष्टिकोण से संपन्न होता है। वह सत्य को स्वीकार कर सकता है, कभी दरवाजा और खिड़कियां बन्द नहीं करता। कुछ लोग यह आग्रह रखते हैं-जितना जानना था, जान लिया, अब कुछ भी शेष नहीं है। यह ऐकान्तिक आग्रह है और इसी से असत्य का विवाद खड़ा होता है, लड़ाइयां
आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण : १७३
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