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समाज अच्छा नहीं चलेगा। जहां केन्द्र में आत्मा है, वहां सब कुछ ठीक चलेगा। मनोविज्ञान ने 'ईगो' और 'सुपर ईगो' पर बहुत विचार किया। अध्यात्म के आचार्यों ने 'मेरा' पर बहुत विचार किया। यह मम की बुद्धि एक भ्रान्ति है। सचाई यह है-शरीर भी मेरा नहीं है। अगर शरीर मेरा है तो वह एक दिन छूट क्यों जाता है ? शरीर मेरा है, यह कोरी मान्यता है, मात्र माना हुआ सत्य है, यथार्थ का सत्य नहीं है। वास्तव में मेरा कुछ नहीं है। यदि मेरा होता तो कभी मुझसे अलग नहीं होता। अपना अपना : पराया पराया बहुत वर्ष पहले मैंने एक कविता लिखी- 'उसका तात्पर्य यह था-पानी बहुत बरसा। वह फैला तो गड्ढों ने स्वागत किया। जितना आवश्यक था, अपनें में समेटा, बाकी बह जाने दिया। आगे चला, फिर तालाब आए, झीलें आयीं, जितना आवश्यकता थी, ले लिया, शेष ढकेल दिया। नदी आयी। उसने पानी को बहाया। समुद्र ने उसे स्थान दिया-तुम आओ और रहो। आखिर अपना अपना होता है और पराया पराया। पराया उतना ही रखेगा, जितनी उपयोगिता है। उपयोगिता समाप्त हुई तो धक्का दे देगा। दो शर्ते हम कैसे कहें कि वह मेरा है ? अपना तो केवल चैतन्य है, जो कभी अलग नहीं होता। एक बच्चे की चेतना जागृत थी। यह नहीं मान लेना चाहिए-बड़ा आदमी ही बुद्धिमान् और विवेकवान् हो सकता है। एक छोटा बच्चा भी जाग जाता है और एक प्रौढ़ या बूढ़ा आदमी भी सोया रह जाता है। चेतना की अवस्था को शरीर के आधार पर नहीं तोलना चाहिए। छोटा बच्चा मिट्टी के साथ खेल रहा था। राजा की सवारी निकली। राजन ने बच्चे को देखा। उसे वह इतना मोहक लगा कि बिना बुलाए राजा उसके पास गया। बच्चा खेलने में व्यस्त रहा, राजा की तरफ देखा भी नहीं। राजा ने कहा- 'बच्चे, तुम देखो, तुम्हारे सामने कौन खड़ा है ? बच्चे ने राजा की ओर देखा। राजा ने कहा- 'तुम वहुत अच्छे बच्चे हो, फिर भी मिट्टी के साथ खेल रहे हो ? बच्चे ने कहा-आप इतना भी नहीं जानते ? यह मिट्टी का पुतला मिट्टी
आध्यात्मिक वैज्ञानिक व्यक्तित्व का निर्माण : १७६
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