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दमित वासनाएं ही तुम्हारे सामने संघर्ष का वातावरण निर्मित करती हैं। उन्हें यह भी नहीं बताया जाता कि इन वृत्तियों का तुम्हें परिष्कार करना है, संयम की साधना करनी है, इन्द्रिय और मन पर नियंत्रण पाना है ।
वृत्ति का निरोध : संयम
हम वृत्ति को छोड़ कर केवल परिस्थितिवाद पर चलेंगे तो इस चक्र का कभी अन्त नहीं होगा । परिस्थितियां तो उलझती रहेंगी। चूहे के सामने बिल्ली के भय की परिस्थिति है तो बिल्ली के सामने भी कुत्ते के भय की परिस्थिति है। कुत्ते के सामने शेर के भय की परिस्थिति है तो शेर के सामने भी मनुष्य के भय की परिस्थिति है और मनुष्य के सामने मृत्यु के भय की परिस्थिति है । इसीलिए शिव ने सोचा - इस श्रृंखला का कोई अन्त नहीं है और उन्होंने पुनर्मूषको भव का वर दे दिया ।
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मुकाबला करो, पलायन मत करो, परिस्थिति का सामना करो । यह सामना करने की बात नहीं सिखाई जाती । परिस्थिति के सामने दब कर जीने की बात सिखाई जाती है । परिस्थिति का मुकाबला तभी किया जा सकता है, जब हम वृत्तियों का मुकाबला करें। इस सत्य को अध्यात्म के आचार्यों ने खोजा था - 'संयम करो, वृत्तियों का निरोध करो । 'महावीर ने कहा था - 'संयम करो ।' पतंजलि ने कहा - 'चित्तवृत्तियों का निरोध करो।' अणुव्रत का धोष बना - 'संयम ही जीवन है ।' जीवन का जीवन है संयम । आध्यात्मिक व्यक्तित्व की कसौटी है-वृत्ति पर ध्यान केन्द्रित रहे और वृत्ति के संदर्भ में आर्थिक या सामाजिक परिस्थिति का अध्ययन तथा परिष्कार होता रहे ।
अनासक्ति
आध्यात्मिक व्यक्तित्व की पांचवीं कसौटी हैं अनासक्ति । यह सच हैं कि पदार्थ से बिना जीवन की यात्रा नहीं चलती। खाना-पीना, मकान, कपड़ा, दवा, शिक्षा के साधन - ये सब पदार्थ अर्थ पर निर्भर हैं । उसके बिना काम नहीं चलेगा। आध्यात्मिक व्यक्तित्व वह है, जो पदार्थ को पदार्थ मानता है, उपयोगी और आवश्यक मानता है, किन्तु आत्मीय नहीं मानता। आध्यात्मिक व्यक्तित्व उसे 'मेरा' कभी नहीं मानेगा। जहां केन्द्र में मैं और मेरा है, वहां
१७० : नया मानव : नया विश्व
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